गुरु पूर्णिमा विशेष

गुरु पूर्णिमा विशेष--दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।
जीवन को मर्यादा है,मर्म है जीवन मूल्यों का जीवन के अंधियारे का
उजाला है ।
दरबार हज़ारो देखे है तेरे दर सा
कोइ दरबार नही दुनियां के गुलशन में ऐसा कोइ सय नहीं
जिसमे तेरा गुलज़ार नहीं।।
ईश्वर भी तेरे दर आता परम आत्मा का परमज्ञान का दाता
तुझसे ऊपर जहाँ में कोई विधि
विधान नहीं।
दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।
देवो का गुरु बृहस्पति असुरों का
सुक्राचार्य है सृष्टि की वाणी गुरु
वाणी मानवता का अस्तित्व अवतार।
दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।
करुणा ,दया का सागर  रौद्र रूद्र
शंकर  शोक दुःख विनासक 
भय भव् भंजक माता पिता सम।।
दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।
दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।
भाग्य भगवान बताता ईश्वर से 
मिलवाता सृष्टि की दृष्टि युग संसार अम्बर अवनि।।   
दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।

ममता का आँचल पृथ्वी
पिता आकाश सा सम्बल
ज्ञान ,कर्म ,दायित्व बोध जन्म,
जीवन सृष्टि ,नित्य ,निरंतर उत्तर मध्य आदि।
दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।

दुष्ट दलन का क्रूर काल का निर्माण ,समाज राष्ट्र का रास राशि
विष्णु ,ब्रह्मा महेश देवो का धर्म मर्म मार्ग 
दुनियां बतलाता दिखलाता
सत्य साक्षात् परम परमेश्वर।
दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।

गुरु श्रेष्ट है गुरु इष्ट है गुरु
आत्म का मोल मूल्य मोल
अनमोल जीवन  मार्ग व्यवहार 
प्रकाश ।
दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।
बचपन जीवन मृत्यु सुबह शाम
दिन रात की गौरव गरिमा गान
मान अभिमान है।
दरबार हज़ारों देखें है तेरे दर सा क़ोई दरबार नहीं जिस गुलशन में
तेरा नूर न हो ऐसा तो क़ोई गुलज़ार नहीं।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ