हे जीवन उद्धारक ,

हे जीवन उद्धारक ,
है सृष्टि संहारक नमन ।
हे प्रलंयकर चंद्रशेखर,
हे शिवशंकर नमन ।।

आपके डमरू में महाकाल 
का तांडव विनाश थिरकता ।
चंद्रभाल पर शोभे सुधा 
नव प्रकाश बिखराता ।।

सिंधु मंथन में था 
भयंकर निकला गरल ।
देव -दानव लड़े अमृत को,
प्रश्न विष कौन वरण करें?  

जो औरों का विष पी जाता,
महादेव नीलकंठ है ।
जो वैरागी शमशानी ,
सब मोह से विरक्त शिव है ।।

हे जीवन के उजियारे ,
हे भगवान प्यारे ।
आप को हमारा नमन,
कोटि-कोटि अभिनंदन।।

जटाओं से सुख
की धारा बहा दें।
कष्ट हरें सब को 
निरोग बना दें ।।

आत्मविश्वास के दीप ,
उर में प्रज्वलित करा दें ।
विष पीकर भी आप,
जीना सिखा दें ।।

हे हलाहल कंठधारी 
हे सुखकारी हे नागधारी ।
आपको नमन हे हितकारी,
हे प्रलयंकारी आपको नमन ।।

वृषभ की सवारी करतें
जो सर पर जग का जुआ ढ़ोता ।
जो नंदी पर बैठते,मान बढ़ातें
देती जो दूध, धरा अमृत पीता।।

ना वह बैकुंठ है,
ना चाहें ब्रह्मलोक ।
ना इंद्रलोक ,करते हैं ,
साधना बैठे हिम लोक।।

वह राम का भी है ,
वह रावण का महादेव ।
खुद दिगंबर रहें देव,
जग को बाँटे वैभव ।।

बेलपत्र अक्वन ,
भाँग -धतूरा
निकृष्ट वस्तु चढ़े ,
बस भाव हो पूरा ।

भ्रांतिमय कलुषित कंठ,
कैसे वंदना के गीत गाऊँ।
देव!  तमसाच्छन्न उर में ,
मैं तुम्हें कैसे बिठाऊँ।।

उन्मादी मैं भूला, खोया
तुच्छ भौतिक जग की माया ।।
हाय प्रभु इन पाप में डूबें करों से ,
रुद्राभिषेक कैसे कर पाऊँ ।।

हो कृपा प्रभु ! दो आशीष ,
तव चरण रज पाऊँ ।
पंक मय जीवन सुधारूँ,
तुम्हें रिझाऊँ तेरी आरती गाऊँ।।


अंशु प्रिया अग्रवाल 
मस्कट ओमान
स्वरचित 
मौलिक अधिकार सुरक्षित

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