मिलन
की तेरी तस्वीरों से ही
अब मैं बात करता हूँ।
तुझको दिल में बसा के मैं
नित मुलाकात करता हूँ।।
तू मिलना चाहे या ना चाहे
ये तो तुम्हारी मजबूरी है।
मैं तो हूँ अब बस तेरा
तुझपे ही विश्वास करता हूँ।।
तेरे जुल्फों के छाँव में रहना है।
और मुझे तेरे बाहों में सोना है।।
तेरे मन की हर बात सुनना है।
तुझसे अपनी हर बात कहना है।।
मैं तो था केवल एक आवारा।
जहाँ तहाँ भटकता रहता था।
अब थक गया हूँ मैं सिर्फ मुझे
तेरे संग रहा रहना है।।
तुम दरिया हो अगर मैं
बनके पानी रहता है।
तुम हर इक अक्षर हो जो मैं
नित नए कहानी कहता हूँ।।
तुम सोचती होगी की ये
आखिर कैसा अलबेला है।
तुम्हे मैं सच सच बताऊँ तो
मैं बिल्कुल अकेला हूँ।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार
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