आदि या अनन्त
प्रारब्ध अनन्त है सृष्टि का,
उपक्रम है तो अवसान भी है।
है आलोकित दिनकर से अम्बर,
सुबह अगर तो शाम भी है।
खेल जगत का जनम -मरण,
आना-जाना ही काम भी है।
जीवन में कभी खुशियाँ आई,
आना कभी गम का नाम भी है।
धरती तपती कभी ग्रीष्म में,
शीतल-सावन की छाँव भी है।
है 'जीवन' आरम्भ धरा पर,
इति 'जरा' होना ही है।
क्षण-भंगुर मानव-तन का,
शाश्वत-सत्य मरण ही है।
धर्म-कर्म का अंत न कोई,
बस,वहीं जतन करना ही है।
घिरती काली घनघोर घटा ,
आलोकित दिनकर, होना ही है।
कभी बवंडर हाहाकार मचाता,
शाँत-सागर का इतिश्री ही है।
सुख-दुख ,खुशी -गम पूरित,
जीवन का नाम परिवर्तन ही है।
आदि-अंत का खेल जगत,
आना-जाना निश्चित ही है।
💐समाप्त💐
स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका:-शशिलता पाण्डेय
💐 अम्बर-उत्सव💐
बोल रहे अब मोर-पपीहा,
आज चली पुरवाई है!
टप-टप टपाटप बरसी बूंदे,
"अम्बर पर आज सगाई है!"
रिमझिम -रिमझिम बरसे सावन,
गूंज उठे ब्योम शहनाई है!
हरियाली पट धारण कर,
वसुंधरा खिलकर मुस्काई है!
मेघ -पट ओट में रश्मि-किरण
छुप लाज से सिमटी- शर्माई है!
श्वेत-धवल गजरा सा बदरा झूमे
केश-कुसुम सजा ब्योम पर छाई है।
छेड़ रही गजब तराना कोयल,
मीठे-स्वर में मंगल-गीत सुनाई है!
"अम्बर पर आज सगाई है!"
चंचल-चपला चम-चम चमके,
खुशियों की ज्योति जलाई है!
काले मेघ-पुष्प आँखों मे अंजन अद्भुत,
श्रृंगार पुरित सखी पुरवाई संग आई है!
हरियाली से झूमे वन-उपवन,
फूलों पर भी मस्ती सी छाई है!
गुनगुन मधुकर पुष्प-पंखुड़ियों पर
उसपर भी मौसम की खुशियाँ छाई है।
गरज-तड़प कर बरसे बदरा ,
ढोल-नगाड़े सी ध्वनि सुनाई है!
दादुर-झींगुर मधुर गीत सुनाए,
"अम्बर पर आज सगाई है!"
नव-पल्लव दल डोले हर्षित होकर,
अब सावन ऋतु मनभावन आई है!
🎂समाप्त🎂 स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका- शशिलता पाण्डेय
0 टिप्पणियाँ