गांव ,शहर, नगर की गलियों की कली सुबह सुर्ख सूरज की लाली के साथ खिली ।।

गांव ,शहर, नगर की गलियों की
कली सुबह सुर्ख सूरज की लाली केसाथ खिली ।।

चमन में बहार ही बहार मकरंद
करते गुंजन गान।
मालूम नहीं उनकी चाहत जिंदगी
जान कब छोड़ देगी साथ।।

रह जाएगा चमन में रह जाएगा गम का गमगीन साया किसी नई
कली के फूल बनने का इंतज़ार।।

फिर कली  खिली किस्मत या
बदकिस्मत से फूल बनी।   

आवारा
भौरें के इंतज़ार सब्र की सौगात सुबह फिर लम्हों केलिये जुदाई की याद में मिली।।

गली गली फिरता भौरा
बेईमान कलियों की गली में।

खुदा से कली के फूल
बनने की इल्तज़ा दुआ की
चाह राह में।।

गुल गुलशन गुलज़ार के चमन बहार में कली की मुस्कराहट
फूल की चाह आवारा भौरे का
उपहार।।

भौरे की जिंदगी प्यार का यही
दस्तूर ।                            

जिंदगी भर अपने मुकम्मल
प्यार की तलाश में घूमता इधर
उधर ।।                                

पूरी जिंदगी हो जाती खाक
भौरे को  हर सुबह खिले फूलों का
लम्हा दो लम्हा साथ ही जिंदगी
का एहसास।।

पल दो पल के एहसास के लिये भौरे बदनाम आवारा दुनियां ने दिया नाम।।

भौरे की किस्मत उसके साथ
यही उसकी नियति जिंदगी प्यार
जज्बात।।  

इंसान की जिंदगी भौरों से कुछ
कम नहीं अपनी चाहत की खुशियों के फूल की करता
रहता तलाश।।

हर सुबह शाम लेता भगवान् का
नाम अपनी चाहत की कली की
डाली को दामन में समेटने को
परेशान।।

कभी एक इंसान की चाहत की
कली को दूसरा इंसान ही मसल
देता अरमानों पर गिरा देता आसमान।।

कभी अरमानो की कली के खिलते ही फूल बनते ही आ
जाता किस्मत के करिश्मे का
वक्त बेवक्त।।

आगे बढ़कर छीन लेता अरमानो का जमी आसमान तमाम मसक्कत इंतज़ार की काली फूल
सी जिंदगी की आरजू का आसमान।।

इंसान कभी जुदाई में कभी फिर
चमन सी जिंदगी में तमन्नाओ के
तरन्नुम में निकल पड़ता कभी
तन्हा कभी कारवां में भी तनहा
इंसान।।

रात की कली सुबह की फूल शाम
धुल को फूल सी जिंदगी इंसान।।

आवारा भौरों की तरह अपनी मंजिल मकसद की गलियो की
गलियों में भटकता।।          

ना जाने
कब हो जाती जिंदगी की शाम
दो गज़ जमीन पर लेता धुल की
फूल सी जिंदगी गुमनाम।।




नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

Badlavmanch

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