पंख खुले और उड़ जातीं, शायद चिड़ियों जैसी है।
गोद में खेली बड़ी हुई, बाप की लाडो नकचढ़ी हुई।
नीति है या है अनीति, जानूँ क्या रीत ये कैसी है।
बेटा घर का चिराग, तो बिटिया चिड़ियों जैसी है।
घर के आंगन की रौनक, करती थी जो अटखेली।
बड़ी हुई तो लेने आई, उसको झुलाने न जाने किसकी डोली।
मेरे दिल को खुश भी करती, रुलाती भी रीति ये जैसी है।
बेटा घर का चिराग, तो बिटिया चिड़ियों जैसी है।
घुटनों चली काँधे बैठी, मेला देखे गुड़िया छोटी।
कभी रोटी सेंक खवाये, समझाए बातें कभी बड़ी छोटी।
अचकन बचकन भूल गई वो, बस यादें पलछिन जैसी है।
बेटा घर का चिराग, तो बिटिया चिड़ियों जैसी है।
पंख खुले और उड़ जातीं, शायद चिड़ियों जैसी है।
अनुराग बाजपेई(प्रेम)
पुत्र स्व० श्री अमरेश बाजपेई
बरेली (उ०प्र०)
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