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मानव धर्म है सर्वोपरि निर्वाह कीजिए
जन-जन के अमन चैन की परवाह कीजिए।
सोचो तो क्या मिलेगा किसी को मार कर
आगे बढा़ है कोई भी निज को सुधार कर
खुद पै होगा भुगतान मत गुनाह कीजिए ।
जन-जन के अमन चैन की परवाह कीजिए।।
अहं ,उन्माद,स्वार्थ में नर सब कुछ खोता है
बर्बाद करने वाला ही बर्बाद होता है
कौतुक में कूदकर ना वाह -वाह कीजिए ।
जन-जन के अमन चैन की परवाह कीजिए ।।
बेहयाई ,बेशर्मी और बर्बादी की लीला
गढ़ पायेगी कभी नहीं सुख शान्ति का कीला
अब हद हो गयी है बंद ये तबाह कीजिए ।
जन-जन के अमन चैन की परवाह कीजिए।।
ईश्वर -अल्लाहक्ष गाँड गुरू मानने वालों
सबकुछ सम्भल जायेगा खुद अपने को सम्भालो
मत मजहबी जुनून में सब दाह कीजिए ।
जन-जन के अमन चैन की परवाह कीजिए।।
कोई योनि नहीं जग में मानवस योनि से बढ़कर
क्यों खत्म इसको कर रहे आपस में ही लड़कर
सभ्यता सुकून की "कवि बाबूराम " चाह कीजिए।
जन-जन के अमन चैन की परवाह कीजिए।।
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बाबूराम सिंह कवि
खुटहाँ ,विजयीपुर ,गोपालगंज
बिहार ,पिन-८४१५०८
मो०नं० -९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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