यह कैसा संभाषण है !

 यह कैसा संभाषण है !
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 यह कैसा संभाषण है !
 प्रायोजित अभिभाषण है !.. यह
 ज्ञान ध्यान सब भूले हैं,
 दंभ अज्ञान में  फूले हैं ,
 मंत्रणा दुखदायक हैं ,
  यंत्रणा भय कारक हैं,
 पूर्वाग्रही दुःशासन है !... यह
 अपनों पर आघाती हैं,
  सपनों पर प्रतिघाती हैं,
 पीठ पर वार किए हैं,
  हाथों पर हार लिए हैं,
 भीतर घाती विभीषण हैं !... यह
 शतरंज बिछात बिछाते हैं,
  प्यादे जाल लगाते हैं ,
 शह मात का खेला है ,
 मंत्री संत्री का रेला है ,
यह कैसा शीर्षासन है !....  यह
 राजनीति का मेला है,
 छल नीति का खेला है,
देश हित को दूर किया है,
 स्वहित का साथ दिया है,
 कहने का अनुशासन है !... यह
 लूट तंत्र हावी  है  ,
 भ्रष्ट तंत्र प्रभावी  है ,
 प्रजातंत्र की खिल्ली है ,
खंभा नोचें  बिल्ली है ,
 यह कैसा सुशासन है !... यह
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# रमेशचंद्र  शर्मा
 16 कृष्णा नगर इंदौर
 स्वरचित मौलिक रचना
 

 
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