हो न कभी सत्कर्म से खाली

हो न कभी सत्कर्म से खाली
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पकड़ प्यार सत्य-धर्म की डोर ,
बढ़   सर्वदा प्रकाश की  ओर।
मिल बांटकर  खा निज थाली ,
हो  न  कभी सत्कर्म से खाली।
औरों    से    सदगुण सम्भाल ,
निज काअवगुण दोष निकाल।
मन,कर्म,वचन कीकर रखवाली,
हो  न  कभी  सत्कर्म से खाली।

वैर -विरोध  का  नाम मिटाओ,
आपस  में  सदभाव   बढा़ओ ।
पर  पै  कभी  ना  पीटो  ताली,
हो   न कभी सत्कर्म से खाली ।
मधुर  वचन  सबही  से   बोल ,
मानव   जीवन   है   अनमोल ।
पकड़ लो पुण्य धर्म की डाली ,
हो  न कभी सत्कर्म से खाली।

पर  पीडा़  में  हाथ    बढा़ओ,
जग में सुख शान्ति उपजाओ।
विश्व बाग का  बन जा  माली ,
हो न कभी सत्कर्म  से खाली।
दीन -दुखिया  अबला-अनाथ,
सबको  गले  लगा  लो  साथ।
जन-मानस में  ला  हरियाली ,
हो न कभी सत्कर्म  से खाली।

कर  प्रभु  में  श्रध्दा  विश्वास ,
मत  हो  जीवन  में   निराश।
छोड़ पाप जंजाल ए  जाली ,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।
व्देष  ,दम्भ   पाखंड़   बुराई ,
मै , मेरा  निज स्वार्थ  बडा़ई।
छोड़  सभी  करतूतें   काली ,
हो न कभी सत्कर्म से खाली।

पढ़  अनुपम  वेदों  का  सार ,
अपना  घर - आँगन    बुहार।
नहीं  पडोगे  नर्क   की  नाली ,
हो न कभी सत्कर्म  से खाली।
हर पल सामने  मृत्यु  खडी़ है ,
फिर मानवतुझे कुछन पडी़ है।
"बाबूराम कवि "बात  निराली ,
हो न कभी सत्कर्म से  खाली।

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम-बड़का खुटहाँ ,पोस्ट-विजयीपुर (भरपुरवा)जिला-गोपालगंज(बिहार)
मो०नं०-९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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