क्या तुम मर्द हो

क्या तुम मर्द हो.....

किसी औरत को देखकर अपने मन और तन पर काबू नहीं कर पाते हो तो खुद को मर्द कहना छोड़ दो.....

किसी औरत देखकर तुम्हारा मन बदल जाता है खुद को मर्द कहते हो,तो खुद को मर्द कहना छोड़ दो......

तुम अपनी हवस की आग किसी लाचार,बेबस और असहाय औरत के साथ बुझाते हो,तो खुद को........

तुम अगर किसी औरत की इज्जत नहीं करते हो बल्कि उनकी इज्जत से तुम खेलते हो,तो खुद को........

तुम किसी औरत को पिता और भाई बन कर उसकी अस्मिता को नहीं बचा सकते हो, तो खुद को......

औरत को सिर्फ भोग की वस्तु समझते हो और  इनका सम्मान नहीं कर सकते हो, तो खुद को.......

किसी औरत की मान मर्यादा के साथ खेलते हो अपनी मान मर्यादा को भूल कर, तो खुद को........

उसकी श्रृंगार को देखकर तुम्हारा मन भेड़िया बनकर उसे नोचनी के लिए सोचते हो, तो खुद को........

अपनी मुस्कुराहट के लिए अगर किसी औरत को रुलाते हो तो खुद को मर्द कहते हो, तो खुद को......

कोई औरत तुम्हे देखकर डरने लगे अगर  फिर भी तुम खुद को मर्द कहते हो,तो खुद को.......
©रूपक

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