जब जीवन में हो निराशा
अवसाद का अँधेरा ।
मन उचट जाए
ना दिखे कहीं सवेरा ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
तब प्रेमचंद की मायावी
नगरी में चले आना ,
कभी कर्मभूमि में,
कायाकल्प कर जाना ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
कभी वरदान पाना
कभी प्रतिज्ञा कर जाना ,
कभी रंगभूमि को
सेवा सदन बनाना ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
संवेदना जज्बातें उर में
ऐसा उफान आएगा ।
अवसाद चिंता तिमिर ,
तम सब दूर हट जाएगा ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
कहीं ईदगाह का हामिद ,
मासूमियत सिखाएगा ।
कभी हीरे -मोती का जोड़ा ,
प्रेम की भाषा समझाएगा ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
ठेठ ग्रामीण परिवेश का
हवा सुकून पहुंचाएगा ।
भारतीय संस्कृति की ,
गरिमा गान गुनगुनाएगा ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
चलचित्र पात्रों का
सामने यूं चलेगा ।
जीवन मर्म दर्शन
तू सब समझ लेगा ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
सामाजिक कुरीतियाँ
और विषमताएँ ।
कुठाराघात अनोखा ,
ऐसा ना देखा कहीं उपमायें ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
साहित्य की अस्मिता,
गरिमा का बखान ।
साहित्यिक धरोहर है ये,
पगले इसे पहचान ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
प्रगतिशीलता की झलक
क्या सर्वांगीण थी ।
क्या सोच विस्तृत ,
व्यापक बड़ी थी ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
शब्दों का मर्म भेदी बाण ,
जाने कितना चलाया था ।
पता नहीं क्या वह
अनुसंधान रात दिन किया था ।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
उपन्यास सम्राट को
हमारा नमन ।
उनके चरण रज को,
नम्र अभिनंदन ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
कलम लिखती नहीं,
बोलती थी इनकी ।
शब्द -शब्द नहीं ,
औजार थे इनके ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
कसक था , टीस थी।
मार्मिकता थी यथार्थता थी ।
लेखनी नहीं ,जीवंत प्रतिमा थी ।
वाह रे शिल्पकार ! क्या कथा शिल्प थी ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
इनकी रचनाएँ इनकी लेखनी ज
जनमानस का दर्पण है ।
आत्म शांति की खुराक ,
साहित्य देवी का अर्चन है ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
कल्पना नहीं ,फंतासी नहीं ,
वास्तविक स्वरूप दर्शन है।
जुल्मों सितम का चित्रण ,
परतंत्रता का दंश विवरण है ।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
देश प्रेम में सराबोर है ,
अद्भुत रसीला रस है ।
परिवर्तन कर सकता है ,
पारस मणि बन सकता है।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
विचार क्रांति अभियान ला सकता है ,
हवा का रुख बदल मशाल जला सकता है।
धार्मिक उन्माद ध्वस्त कर ,
मार्ग प्रशस्त कर सकता है।।
रे मन होना ना उदास
होगा भोर होगाजल्द सवेरा !
अंशु प्रिया अग्रवाल
मस्कट ओमान स्वरचित
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