तुम कही पीछे तो नही हट रहे हो।।

बदलाव मंच
26/7/2020

स्वरचित कविता

कही पीछे तो नही हट रहे हो।


तुम कही पीछे तो नही हट रहे हो।।
जो तुम उदासी में यू सिमट रहे हो।
 
दुसरो को पूर्णतः सचाई कहने में।
स्वयं से कुछ पल बात करने में।।

क्या तुम आंकलन करते हो की
 वास्तविक रुप में क्या छूटा है।
सहेज कर रखा था जो शीशा 
वो आज आख़िर कैसे टूटा है।।

आखिर तुम्हे क्या करना है।
या जीवन में कुछ करे ही मरना है।।

सोचो जरूर और क्यों रखे हो ये ग़ुरूर।
क्या तुम्हें पता नही है जीवन का दस्तूर।।

जो आता है दूसरों के द्वारा और 
जाते वक्त किसी के साथ नही जाता।
जिंदगी में सुख हो या दुख 
किसी को हिस्सा नही दे पाता।।

चलो मोह की जंजीर तोड़ो।
स्वयं को अंदर की तरफ मोड़ो।।

फिर देखो कैसे अहंकार का नाश होगा।
तुम्हे अध्यात्म में ईस्वर से
 जुड़ने का एहसास होगा।।

तुम पूर्णतः विस्वास करो की
 सौभाय के साथ सुकून भी पाओगें।
जिंदगी के मूल रहस्य को 
अच्छी तरह समझ पाओगे।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार
©


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