विषय- क्या मानवता सिर्फ स्वार्थ सिद्धि के लिये जीवित है।
...विकास दुबे..(विक्रमादित्य)
उन्नाव(UP)
मित्रों हम जिस अंधानुकरणीय युग में जी रहें है उसे देख व समझकर हमें ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिये की आज दुनिया धीरे धीरे एक बाजार का रूप ले चुकी है, जँहा हर कोई इस बाजार में खड़ा है फर्क इतना हो सकता है की कोई बिकने के लिये तो कोई खरीदने के लिये। जी हाँ मित्रों यँहा हर व्यक्ति ब्रांडिंग की इस चमचमाती दुनियां में खुद को चमकाना चाहता है वो दिखाना चाहता है की मेरा भी कोई वजूद, कोई अस्तित्व है इस रोशन दुनियां के बाजार में। हे 6प्रभू आओ मुझे समझो, मुझे भाव दो, मेरी वकत करो क्योंकि मैं अभी इस चराचर में जिन्दा हूँ, मेरी अहमियत को समझो मैं भी कहीं हूँ।
कुछ अरसे से इस अजीबो गरीब बदलाव या आधुनिक भाषा में जिसे फैसन कहते हैं ने इतना जोर पकड़ा है की मनुष्य को सेवा से ज्यादा अपनी तस्वीर खिंचाने की चिंता होने लगी है जब मात्र कुछ निसहाय लोगों को किये गये दान का महिमामंडन करते हुये उसे सोसल मीडिया के माध्यम से अपनी इस अदभुद कीर्ति को दुनियां के सतरंगी आसमान में दर्ज करा सकें, चाहे बेशक उस बीमार गरीब व्यक्ति की मजबूरी, लाचारी पर उसके पड़ोस के लोग हंसे पर दानदाता महानुभाव को इससे क्या फर्क पड़ता है उनकी नजर तो दान किये गए एक केले, एक सेब से तस्वीर के साथ पल पल आने वाली हाउ स्वीट बेबी, ग्रेट जॉब सोना, अवेसम वर्क डार्लिंग जैसे फूहड़ कमेंट और लाइक पर रहती है। अरे भाई क्यों न हो जब जनाब ने सेब और केलों के रूप में अपनी सारी सम्पत्ति नाम कर दी है उस बेचारे के।
हाय रे स्वार्थ!
अपने दादाओं के मुख से कभी सुना था की समाज में सब कुछ बिना लालसा के नहीं होता पर आज उसे खुले आम चरित्रार्थ होते हुये देखता हूँ तो हँसी आती है की आज भी हमारा समाज ऐसे नमूनों से भरा पड़ा है, जँहा लोग बिना स्वार्थ पर नजर दौड़ाये कोई भी कार्य करने को तैयार नहीं होते।ऐसे परमकर्तव्य परायण मनुष्य को देखकर ही आदिकवि तुलसी दास जी को रामायण में, स्वार्थ लागि करें सब प्रीती जैसी पंक्तियाँ लिखनी पड़ी।
काश! हम अपने आप को स्थापित करने की होड़ के बीच इस छदम मानसिकता को अपने अंतर्मन से बाहर का रास्ता दिखा पाते।
सोच कर देखिये क्या हम बिना प्रदर्शन किये हुये मानवता के लिये किये गये मानवीय कार्यों से अपनी अंतरात्मा को संतोष पहुँचा सकते हैं, क्या हम सेवा भाव से की हुयी सेवा द्वारा अपने को खुश रख सकते हैं, क्या हम विपत्ति में फंसे हुये इंसान की निश्वार्थ मदद कर सकते हैं। उम्मीद करता हूँ आपका उत्तर हाँ होगा। बेशक इससे आपको सांसारिक प्रसन्नता न मिले पर मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ की आपको इससे आपको एक ऐसी आत्मीय शांति मिलेगी जो आपको मानसिक रूप से पूर्णतयः सन्तुष्ट कर देगी।
सोच कर देखियेगा अच्छा लगेगा।
मिलते हैं फिर अगले अंक में...
....विकास दुबे.....
Badlavmanch
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