फूलों की मुस्कुराहट में
चिड़ियों की चहचहाहट में ।
भोर की सुनहरी किरणों में ,
छोटी-बड़ी दिल की आहटों में ।।
कान्हा तुम ही तो समाते हो!
ख्वाबों में ,बहारों में ,
फिजाओं में ,हवाओं में।
मायूसी में ,संवेदनाओं में,
गुस्से में ,प्यार में सब में समाते हो !
कान्हा तुम ही नजर आते हो!
कहाँ लबालब भरता
प्रेम गगरिया !
आँखों में छाया
इश्क खुमारियाँ ।।
कान्हा स्वांसों में भी साथ निभाते हो।
करता बेसुध, बेचैन
दिल ढूंढे अंगड़ाइयाँ ।
कभी प्रेम धुन ,
कभी बजे मुरलिया ।।
कान्हा भूख प्यास सब दूर ले जाते हो।
हे नटवर नागर !
हे गोपाल गिरिधर !
मैं प्रेम दीवानी वंशीधर,
तेरी जोगनिया मस्तानी ।।
नैनन प्यासी, छलिया क्यों नहीं आते हो।
अंशु प्रिया अग्रवाल
मस्कट ओमान
स्वरचित
मौलिक अधिकार सुरक्षित
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