प्रेम दीवानी मिरा

शीर्षक- प्रेम दीवानी मीरा

फूलों की मुस्कुराहट में 
चिड़ियों की चहचहाहट में ।
भोर की सुनहरी किरणों में ,
छोटी-बड़ी दिल की आहटों में ।।

कान्हा तुम ही तो समाते हो!

ख्वाबों में ,बहारों में ,
फिजाओं में ,हवाओं में।
मायूसी में ,संवेदनाओं में,
गुस्से में ,प्यार में सब में समाते हो !

कान्हा तुम ही नजर आते हो!

कहाँ लबालब भरता 
प्रेम गगरिया !
आँखों में छाया 
इश्क खुमारियाँ ।।

 कान्हा स्वांसों में भी साथ निभाते हो।

करता बेसुध, बेचैन 
दिल ढूंढे अंगड़ाइयाँ ।
कभी प्रेम धुन ,
कभी बजे मुरलिया ।।

कान्हा भूख प्यास सब दूर ले जाते हो।

हे नटवर नागर !
हे गोपाल गिरिधर !
मैं प्रेम दीवानी वंशीधर,
तेरी जोगनिया मस्तानी ।।

नैनन प्यासी, छलिया क्यों नहीं आते हो।

अंशु प्रिया अग्रवाल 
मस्कट ओमान
 स्वरचित
 मौलिक अधिकार सुरक्षित

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