तलाश है ठिकाना का
कष्ट है जिंदगी में मेरा
समझो राही हीं हूं मैं
दर-दर भटकता हूं
कभी इसके यहां तो
कभी उसके यहां
किसी को परवाह नहीं इसका
मुझे तो बस तलाश है ठिकाने का।
कोई मुझे पनाह देगा
कोई मुझे रख हीं लेगा
ऐसा कोई विचार नहीं है मेरा
बस एक एहसान चाहता हूं
यह दौर में खिचाई चाहता हूं
चिंता बहुत नहीं मुझे किसी का
मुझे सिर्फ तलाश है ठिकाने का।
बेगाने सा दिखती दुनिया
कौन अपना कौन पराया
सब पैसा पर निर्भर करता है
पैसा नहीं है मेरे पास
मुझे साथ नहीं है किसी का
मुझे बस तलाश है मंजिल का।
✍🏼Ranjan Kumar
Badlavmanch
0 टिप्पणियाँ