उत्पीड़ित महिला श्रमिकों ने, हॅसिया को हथियार बनाया

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चित्र क्रमांक 1
शीर्षक "उत्पीडित महिला श्रमिकों ने, हॅसिया को हथियार बनाया "
पशुओं को चारा जो काटे,महिलाएं ले हाथ में हॅसिया ।
काम करे खेती-बाड़ी में,महकाये जीवन की बगिया ।
सुबह, शाम परिवार संभाले, करती है सब घर का काम ।
दिन भर वह करती मजदूरी, नहीं मिले उसको विश्राम ।
कमरतोड़ मेहनत का प्रतिफल, राम मिले ना माया ।
उत्पीडित महिला श्रमिकों ने, हॅसिया को हथियार बनाया ।
अनुशासित हो काम करे वह, पुरुषों से भी ज्यादा ।मजदूरी आधी ही मिलती, क्योंकि वह है मादा ।
बच्चों का लालन पालन भी, उसको ही तो करना ।
सह लेती है पछपात को, क्रूर नियति है सहना ।
श्रमिक रूप ने नारी को, दिन में तारे दिखलाया ।
उत्पीडित महिला श्रमिकों ने, हॅसिया को हथियार बनाया ।
अग्यान, अशिक्षा, श्रम का शोषण, मिला उसे उपहार ।
कर्तव्यों का बोझ मिला, पर नहीं मिला अधिकार ।
फटेहाल कंगाल दिखे वह, जर्जर दिखती उसकी काया ।
खुशियाँ की कुर्बान जगत पर, बदले में बस नफरत पाया ।
छल, कपट, दम्भ की दुनिया ने, सच्चाई अहसास कराया ।
उत्पीडित महिला श्रमिकों ने, हॅसिया को हथियार बनाया ।
हुई संगठित श्रमिक नारियाँ, करेंगी अब अपना हित साधन ।
आपस में सुख दुख बाँटेंगी, सहजीवन होगा अनुशासन ।
स्वयं सहायता का समूह अब, लाया सुखद सबेरा ।
अपना धंधा शुरू किया, छॅट गया दुखों का डेरा ।
श्रम की पराकाष्ठा से बस, अपना धंधा चमकाया ।
उत्पीडित महिला श्रमिकों ने, हॅसिया को हथियार बनाया ।
स्वरचित 
डा अजीत कुमार सिंह झूसी प्रयागराज मोबाइल नं 8765430655

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