गुनगुनाते रहे हम

मंच को नमन

        नवगीत
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गुनगुनाते रहे हम
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तुम बहो
नदी सम
गीत गुनगुनाते रहें हम

तुम बन सुगंधा
यह को यहां
निरखते रहे
श्रृंगार  को हम

कुछ कहो या न कहो
मौन तो
कुछ कह रहा
खिल रहा
मधुमास सा
दे रहा
नेह आमंत्रण
प्रीति ले
तुम बहो
शीतल बयार सम

नाचे मन झूम कर
बरसें बादल
घुमड़कर कर
पुलकित हो रोम-रोम
तुम मुस्कुराओ
बसंत सम
दीप प्यार का
जलाते रहें हम

वृक्ष होकर मगन
झूमें पवन संग
तितलियां मस्ती करें
पा फूलता संग
तुम खिलखिलाओ
रागिनी सम
गीत गुनगुनाते रहे हम
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक) कोंच,जनपद-जालौन उत्तर-प्रदेश-285205
मोबाइल नंबर-9936505493

Badlavmanch

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