*बदलाव मंच चित्रात्मक काव्य वीडियो काव्य*
*विषय:-चित्र क्रमांक 5*
*शीर्षक:- माँ की गोद।*
*दिनाँक:- ०१/०७/२०२० ,बुधवार*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*हे जगत जननी माते तेरे अंग का अंश हुँ।*
*तूने मुझे नव जीवन दिया तेरा ही वंश हुँ।।*
*मैं केवल एक नन्हा सा तिनके के समान हुँ।*
*तेरे रग छाया का एक रक्त कण समान हुँ।।*
*मैंने न् कोई जग यह देखा तूने मुझे दिखाया।*
*मैंने सहमा सहमा सा तेरे उदर बैठ समाया।।*
*तू जब - जब रोई मैं भी रोया करता तेरे संग।*
*जब तू हंसती तो में भी हंसत रहता तेरे संग।।*
*हे ईश्वर की दाता तूने क्या क्या कष्ट सहे है।*
*इतना बोझ सह दुखड़े किसी से न कहे है।।*
*हे ममतामयी माँ, करुण सागर की धार बहि।*
*मैं बैठना चाहता हूं तेरी गोदी में कुछ पल ही सही।।*
*जब मैंने आकर इस संसार को देखा आंखों से।*
*मन विचलित हुआ जैसे पत्ता टूटा हो शाखों से।।*
*जब मेरे मुख से निकली किलकारी पास तुझे पाया।*
*मेरे लिए तो तू ही सूरज,तू ही चंदा मैंने ईश्वर पाया।।*
*जब भी मैंने अपने तन से कुपदार्थों का त्याग किया।*
*तूने मेरे लिए उदार भाव ले अन्न ,जल त्याग किया।।*
*जब मैंने तेरे तन पर पग से अनगिनत प्रहार किए है।*
*तूने माँ , ईश्वर रूप धर तूने मुझे बस उपहार दिए है।।*
*तेरे आँचल की ममत्व वाली छाँव में मन शांत रहता है।*
*दुनिया में हो शोर शराबा तेरी गोद मे एकांत रहता है।।*
*जग में तेरी संज्ञा माँ ईश्वर संग शास्त्रों ने ही कही।*
*मैं बैठना चाहता हूं तेरी गोदी में कुछ पल ही सही।।*
*हे कंस की बंदिस में देवकी बन श्रीकृष्ण जन्म दिया।*
*नन्दगाँव में तूने ही यशोदा बनकर पालन किया।।*
*तूने ही अवध नरेश के घर राम नाम का किया उद्धार।*
*जो जीवन मरण में जपते सब राम नाम का उच्चार।।*
*तूने ही आगे बढ़ सीता माता बन निश्चल रूप लिया।*
*पुनः माँ सीता के आंचल ने लव-कुश अनूप दिया।।*
*हे माँ ,तेरे अनेक रूप है इस मोहमाया वाल जग में।*
*कहीं तू लक्ष्मी, दुर्गा, काली का रूप ले आई जग में।।*
*तु ही पग-पग माँ तारणहारिणि तू कमलदल विहारणी।*
*तेरे निर्णल मन से छलकता ज्ञान तू ही कष्ट निवारणी।।*
*तू कहीं गंगा ,यमुना,सरस्वती ,तू मां रेवा बन ही बहि।*
*मैं बैठना चाहता हूं तेरी गोदी में कुछ पल ही सही।।*
_कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी_
_राजगढ़ (धार)म.प्र._
_मों:-(८४३५४४०२२३)_
*विषय:-चित्र क्रमांक 5*
*शीर्षक:- माँ की गोद।*
*दिनाँक:- ०१/०७/२०२० ,बुधवार*
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*हे जगत जननी माते तेरे अंग का अंश हुँ।*
*तूने मुझे नव जीवन दिया तेरा ही वंश हुँ।।*
*मैं केवल एक नन्हा सा तिनके के समान हुँ।*
*तेरे रग छाया का एक रक्त कण समान हुँ।।*
*मैंने न् कोई जग यह देखा तूने मुझे दिखाया।*
*मैंने सहमा सहमा सा तेरे उदर बैठ समाया।।*
*तू जब - जब रोई मैं भी रोया करता तेरे संग।*
*जब तू हंसती तो में भी हंसत रहता तेरे संग।।*
*हे ईश्वर की दाता तूने क्या क्या कष्ट सहे है।*
*इतना बोझ सह दुखड़े किसी से न कहे है।।*
*हे ममतामयी माँ, करुण सागर की धार बहि।*
*मैं बैठना चाहता हूं तेरी गोदी में कुछ पल ही सही।।*
*जब मैंने आकर इस संसार को देखा आंखों से।*
*मन विचलित हुआ जैसे पत्ता टूटा हो शाखों से।।*
*जब मेरे मुख से निकली किलकारी पास तुझे पाया।*
*मेरे लिए तो तू ही सूरज,तू ही चंदा मैंने ईश्वर पाया।।*
*जब भी मैंने अपने तन से कुपदार्थों का त्याग किया।*
*तूने मेरे लिए उदार भाव ले अन्न ,जल त्याग किया।।*
*जब मैंने तेरे तन पर पग से अनगिनत प्रहार किए है।*
*तूने माँ , ईश्वर रूप धर तूने मुझे बस उपहार दिए है।।*
*तेरे आँचल की ममत्व वाली छाँव में मन शांत रहता है।*
*दुनिया में हो शोर शराबा तेरी गोद मे एकांत रहता है।।*
*जग में तेरी संज्ञा माँ ईश्वर संग शास्त्रों ने ही कही।*
*मैं बैठना चाहता हूं तेरी गोदी में कुछ पल ही सही।।*
*हे कंस की बंदिस में देवकी बन श्रीकृष्ण जन्म दिया।*
*नन्दगाँव में तूने ही यशोदा बनकर पालन किया।।*
*तूने ही अवध नरेश के घर राम नाम का किया उद्धार।*
*जो जीवन मरण में जपते सब राम नाम का उच्चार।।*
*तूने ही आगे बढ़ सीता माता बन निश्चल रूप लिया।*
*पुनः माँ सीता के आंचल ने लव-कुश अनूप दिया।।*
*हे माँ ,तेरे अनेक रूप है इस मोहमाया वाल जग में।*
*कहीं तू लक्ष्मी, दुर्गा, काली का रूप ले आई जग में।।*
*तु ही पग-पग माँ तारणहारिणि तू कमलदल विहारणी।*
*तेरे निर्णल मन से छलकता ज्ञान तू ही कष्ट निवारणी।।*
*तू कहीं गंगा ,यमुना,सरस्वती ,तू मां रेवा बन ही बहि।*
*मैं बैठना चाहता हूं तेरी गोदी में कुछ पल ही सही।।*
_कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी_
_राजगढ़ (धार)म.प्र._
_मों:-(८४३५४४०२२३)_
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