बदलाव साहित्य मंच
विषय- गुरु पूर्णिमा
दिनांक-05-07-2020
दिन- रविवार
शीर्षक- ज्ञान रुपी परमगुरु
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गुरूओं के गुरु परमपिता परमेश्वर को अर्पित यह रचना
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हे ज्ञान रुपी परम गुरु,
श्रुति ज्ञान काक्ष मुझे दान दो।
श्रुति ज्ञान के आलोक से,
बुद्धि मेरी कर दो विमल,
सत मार्ग पर मुझको चला,
तम ताप से मुझे तार दो।
हे ज्ञान रूपी..।
संतोषी बन कर के जियूं,
अस्तेय की भरो भावना,
धीरज धरु और श्रम करूं,
दुख सह सकुं वो शक्ति दो।
हे ज्ञान रुपी....
इच्छाओं का करलूं दमन,
विषय वासनाओं से बचूं,
इन्द्रियाँ करो वश में मेरे,
और शुद्धता तन मन को दो।
हे ज्ञान रुपी...
अहं क्रोध से मुझे दूर कर,
हिंसा ना मन मे घर करे,
सब प्राणियों से प्रेम हो,
दिल में दया का भाव दो।
हे ज्ञान रुपी...
झंकृत करो मन को मेरे,
संगीत हृदय में भरो,
वाणी में भरकर मधुरता,
वीणा के सुर से साज दो।
हे ज्ञान रूपी...
करता हूँ यह गुणगान मे,
गुरु जी गुणों की खान हे,
गुणो को तेरे दर्शा सकूँ,
कला का रमेश में भाव दो।
हे ज्ञान रुपी परमपिता,
श्रृति ज्ञान का मुझे दान दो।
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नाम-रमेश चंद्र भाट
पता-टाईप-4/61-सी, अणुआशा, रावतभाटा।
मो.9413356728
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