नमन मंच-बदलाव मंच
विषय- मजदूर
दिनाक- १५/०७/२०२०
विद्या- कविता
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मैं ही नव निर्माण नव निर्माता,
हर क्षेत्र मे है मेरी सहभागिता,
भुख की जुगाड मे शहर निकल जाता हूँ
मैं बच्चो को रोता ही छोड़़ जाता हूँ,
हालातो से मजबूर हूँ,
हाँ मैं मजदूर हूँ।।
महीनो भर से नही नहाता हूँ,
श्रम का पसीना बहाता हूँ,
मेरे लिए आराम हराम था,
सिर्फ दो जून रोटी का सवाल था,
हर्ष सुकून से कोसो दूर हूँ,
हाँ मैं मजदूर हूँ।।
आज महामारी का प्रकोप आया,
मुझे सडको पर छोड़ मालिक भाग आया,
परिस्थतियो का मैं जो मारा था,
मगर दिल से मैं नही हारा था,
चल पडा पैदल.घर से जो दूर हूँ,
हाँ मैं मजदूर हूँ।।
थका हारा भयभीत सा हूँ,
कोई नही लेता सुध असहाय सा हूँ,
विपन्नता देख दिल पसीज रहा भागीरथ,
कहा गये है वो सब सरकारी सारथीरथ,
हालातो से मजबूर हूँ,
हाँ मैं मजदूर हूँ।।
भागीरथ गर्ग कांटिया (स्वरचित)
ये रचना मेरी मोलिक है और इसको प्रकाशन की अनुमति देता हूँ।
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