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भाई -भाई का प्यार
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हरिओम सिंह एक बड़े ही उदार व सज्जन व्यक्ति थे। चारों तरफ उनका नाम सब कोई आदर के साथ लेता था। परिवार अन्न -धन से भरा पुरा था, पुश्तैनी जमीन भी उनके पास कुछ थी। वे अपनी पत्नि रेश्मा और अपने पुत्रों रमेश व रोशन के साथ अपना जीवन राजी, खुशी से व्यतीत कर रहे थे।
उनके एक मित्र थे, रनजीत सिंह जो यदा -कदा आया -जाया करते थे, दोनों मित्रों में बहुत प्रेम था।
हरिओम एक दिन अपने पत्नि के साथ अपने हाथों कार चलाकर कहीं जा रहे थे। अचानक दुर्घटना हुई और पति -पत्नि दोनों की घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई ।
रमेश और रोशन दोनों रो-रो के अधमरा सा हो गये, उसी समय उनके मित्र रनजीत सिंह आके सब कुछ संभाल लिए, अपने बल-बुते पर दाह, कृया-कर्म बड़े ही सुन्दर ढंग से सम्पन्न करा दिये।
दोनों बच्चों को समझा -बुझा सन्तावना दे एक नयी जिन्दगी की शुरुवात करने की प्रेरणा देके चले गये।
धीरे -धीरे समय बितने लगा, रमेश कीआयु बिस वर्ष व रोशन की आयु अठारह वर्ष की हो गयी उधर रनजीत सिंह की रमा और सिमा दो जवान लड़कीया थी ।
संयोगवस रमा की शादी रमेश से और सिमा कीशादी रोशन से हो गयी परिवार में खुशियों की लहर फिर से आबाद हो ग ई। अमन -चैन के साथ सब कोई रहने लगा।
दोनों भाइयों में बहुत ही प्रेम था दोनों की जोड़ी राम-भरत जैसी थी। लेकिन घर में रमाऔर सिमा में एक दिन भी नहीं पटता था , रोज बा रोज झगड़ा -झंझट करती रहती थी। रोज -रोज के झंझट से विवश
होकर आपस में बंटवारा कर दोनों भाई अलग -अलग रहने लगे रमेश के उपर एक लाख रूपयें कर्ज था, लेकिन वो रोशन से बताये नहीं और अपने हिस्से की जमीन बेंचकर कर्जा रूपया लौटा दिए।
इस बात की जानकारी जब रोशन को हुई तो वह भी बिना भाई से बताये ही उनकी जमीन उनके नाम अपने रुपये से लिखा दिया।
जब यह बात रमेश को पता चला तब रोशन को बुलाकर रो-रो कहने लगे कि अरे पगले इसकी क्या जरूरत थी, एक बार मुझसे बतलाया तो होता, इसपर रोशन भी रो-रो कहने लगा भाई आप भी तो मुझे नहीं बताये, मैभीतो आपका सहोदर भाई था। इतना कहकर दोनों भाई गले मिलकर फूट-फूट कर रोने लगे। दोनों भाइयों का आपसी प्यार देखकर सभी देखने वालो की आँखें नम हो ग ई।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -बडका खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला -गोपालगंज (बिहार)
मो०नं०-९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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