मेरे सपनों की ससुराल

मेरे सपनों की ससुराल
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ऐसी थी मेरी ससुराल, 
मेरे सपनों की ससुराल। 
माँ - पिता सम थे,
मेरे सास - ससुर।
पति का प्यार पाकर,
मैं हो गई थी निहाल।
ऐसी  थी...
अपनी रोज आठ बजे,
जगने की आदत से ,
थी मैं लाचार।
सासु माँ के हाथों की,
चाय पी कर,
हो जाती मैं बेहाल।
ऐसी थी ...
कुछ दिन बीते,
बदला सासू माँ का व्यवहार,
सीधी  दिखने वाली ननद भी,
अब हो गई थी वाचाल।
ऐसी थी ...
एक दिन सासू माँ 
ससुरजी से बोली-
अजी!ये कैसी बहु लाए हो ?
देखो, इसकी अल्हड जैसी चाल।
ऐसी थी..
तब ससुर ने,
मुस्कुरा कर कहा-
याद करो अपने वो दिन,
तब तुम्हारे भी थे ऐसे हाल।
इतना सुन सासू माँ,
हो गई गुस्से से लाल। 
ऐसी थी...
 एक दिन अचानक,मैं हो गई बीमार,
और भर्ती हो गई अस्पताल।
ऐसी थी ....
कब बेहोश हुई,
कब होश में आयी,
इसका कुछ भी,
मुझे होश नहीं था ।
लेकिन जब आँख खुली,
तो सामने खड़ी,
पूरी ससुराल।
ऐसी थी ...
पश्चाताप के अश्क,
आँखों से छलक पडे ,
और शर्म से,
रुखसार हुए मेरे लाल।
ऐसी थी ...
धीरे-धीरे सासू माँ,
मेरे पास आई और बोली,
बहु, दे दो अब,
गोद मे एक,
प्यारा सा - नन्हा लाल।
ऐसी थी...
मेरा मन,
खुशी से झूम उठा।
और मैं सोचने लगी ,
कि मैं भी थी कितनी नादान ,
यह तो है मेरा परिवार, 
मेरी खुशियों का संसार।
कितनी प्यारी थी ससुराल,
मेरे सपनों की ससुराल,
ऐसी थी मेरी ससुराल-2
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**एकता कुमारी **

Badlavmanch

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