बूढ़ी काकी


बदलवाव मंच

बूढ़ी काकी।

लघुकथा

स्वरचित रचना

प्रकाश कुमार 

मधुबनी, बिहार

9560205841

बूढ़ी काकी मेरे गाँव की सबसे बुजुर्ग किन्तु कम पढ़ी लिखी होकर भी
पूरे जिले में सबसे बुद्धिमान थी। सबसे फुर्तीली थी। बच्चे हो या जवान या  बृद्ध सभी उन्हें काकी कहकर ही बुलाते थे। पूरे जिले में कही भी शादी हो और उनको बुलाया ना जाये ऐसा हो ही नही सकता। सभी दूर दूर से अपनी समश्या लेकर उनके पास आते थे और वो भी उनको अपने सन्तान के तरह उनके समस्याओं को चुटकी में गायब कर देती थी। अरे जब कभी कोई शादी विवाह,या कोई अन्य उत्सव होता था उन्हें लोग जबर्दस्ती बुलाकर ले जाते थे, ऐसी मिजाज थी उनकी। देखने में
शाधारण,नाटे कद की हमेशा मुख में यही होता था राम है ना कर देंगे।
पिछले महीने की बात है मयंक कर्ण की माता जी का देहांत हो गया तो आदित्य को भोज करने के लिए गाँव वालों ने कहा। मयंक कर्ण ने कहा देखो मैं भी यही चाहता हूँ कि भोज हो किन्तु गाँव में है ही कौन जो सब व्यवस्था करवाए। साहू सेठ ने जब सुना तो अपने अंदाज में बोला
खाय के नै या त कहबै की रसगुल्ला खट्टा छै ई कोनो निक बात थोड़े भेलै( जब खाना ना हो तो कह देना की रसगुल्ला खट्टा है ये तो टरकाने वाली बात थोड़े ही हुई। मेरा कहने का तात्पर्य है यदि बूढ़ी काकी के होते समाधान नही हो ऐसा हो ही नही सकता। पान खाते हुए साहू सेठ बोला। नाम से वह सेठ था अन्यथा वह गाँव का ऐसा आदमी था जो
मुँह से पिच पिच पान खा कर ज़हाँ तहां थूकता रहता था। दूसरों के काम में उसे सबसे ज्यादा मजा आता था। मयंक ने कहा ठीक है चलो चलके बूढ़ी काकी से ही बात करते है। फिर क्या था सब झुंड बनाकर पहूँच गए। बूढ़ी काकी आँगन में दो औरतों संग बतिया रही थी। देखते ही औरते घुँघट करते हुए चलने लगी तभी राम शरण बोलने लगा। बूढ़ी काकी प्रणाम आये क्या। आओ आओ राम शरण लेकिन आने से पहले बोल दिया करो का है कि यहाँ मेहरिया भी आती है ना। चलो कोई नही बैठो बोलो क्या बात है बताओ। साहू सेठ बोला काकी बात तो आप जानते ही हो कि अपने मयंक कर्ण की माता जी का देहांत हो गया है। और बिना भोज के उनकी आत्मा को सांति नही मिलेगी तथा ये रिवाज भी है इसलिये मयंक गाँव को भोज खिलाना चाहता है। और गाँव का भी तो खाया है। बूढ़ी काकी : किसने कहा? ये फिजूल की बात राम शरण अरे काकी देखो मंझली ,भलवाई वाली भाभी जो थी पिछले साल मर गई थी साँप काटने पर,तो उनके लिए परिवार वाले भोज नही किये है। तो आजतक वो प्रेत बनकर भटक रही है अब तुम चाहती हो कि मयंक चाचा की माँ भी प्रेत बनकर घूमती रहे व सबको परेशान करती रहे। क्या ये ठीक रहेगा। तभी अन्य किसी ने कहा कि अरे भलवाई वाली चाची तो साँप के काटने पे मरी थी उनकी आयु पूरी नही हुई थी तभी भटक रही है और फिर मयंक बाबा के माता जी तो बूढ़े होकर मरी है वो प्रेत क्यों बनेगी। उनको तो सीधे स्वर्ग मिलेगा। बूढ़ी काकी बोली क्या पंचायत बैठा रहे हो। देखो मयंक ऐसा कुछ नही है।
यदि तुम्हारे पास पैसा है और भोज करना चाहो तो करो अन्यथा मत करो अब पँछी जानवरो को ही देखो उनका कोई श्राद्ध नही करता तो क्या उनको मुक्ति नही मिलती क्या। अब मेरा ही देख लो अब मेरा है ही कौन है तो क्या मुझे मुक्ति नही मिलेगी। डरो मत। परेशान मत हो तुम।
मयंक: बूढ़ी काकी देखो ऐसी बात मत बोलो हम सब है ना तुम्हारे बच्चे। तभी साहू सेठ बोला पान चबाते हुए बोला। अरे बूढ़ी काकी तुम ये बताओ कि भोज में व्यवस्था कैसे हो। बूढ़ी काकी सोचने लगी ये मानेंगे नही,बोली अच्छा सुनों मयंक तुम में पाँच लोग इधर आ जाओ।
पाँचो लोग को काम दे दिया राम साहू तुम्हारा काम होगा खाने का भोजन तैयार करवाना, जी काकी। राम शरण तुम्हारा काम है गाँव वालों को न्यौता देकर ध्यान देना की तीनो टोला के लोग भोजन बारी बारी से आये। महेश बेटा तुम्हारा काम है बाजार से समान लेकर आना। सरवण तुम्हारा काम है पूजा के लिए पंडित को समान जुटाना।
अंकुश तुम्हारा काम है मयंक चाचा के साथ सभी को कहि जरूरत पड़ने पर उनका साथ देना। मयंक कर्ण बोला काकी तुम सबको काम दे दी तुमने मेरे कंधे का बोझ हल्का कर दिया। तभी अनायास मंटू बोला अरे बूढ़ी काकी एक काम और करो ताड़ के पेड़ के नीचे खाना रखने कौन जाएगा। ये भी बता दो नही तो पिछले सप्ताह की तरह भलवाई वाली चाची का प्रेत ना गुस्सा हो जाये। बूढ़ी काकी मन ही मन सोची अच्छा मौका है इस बार ये प्रेत का रहस्य निकाल कर सबके सामने ले ही आऊँगी। बूढ़ी काकी क्या सोच रही हो मंटू बोलने लगा।
अरे जो बोला है वो तो बता दो। बूढ़ी काकी बोली वो काम मैं देख लुंगी। अगले 4 दिन  बाद शाम को जब भोज खिलाया जा रहा था।
तो राम शरण देख रहा था कि धोबी कमलू का बेटा बार बार रसमलाई लोटे में छुपा कर रख रहा है। उसे हँसी आ रही थी किंतु बाद में पूछने पर पता चला कि उसने दादी जी के लिए रख रहा है।रामशरण को मन में प्रेम भाव उमड़ आया बोला,बेटा तू एतेक घबरा नै। दादी लेल और चाही त ल जो हम द देबौ(बेटा घबरा मत दादी के लिए और चाहिए तो ले जा मैं दे दूंगा) बच्चा मुस्कुराते हुए बोला"नही बहुत है ये" वह शरमा भी रहा था। कुछ समय बाद काकी ने दो लड़कों को लेकर ताड़ के पेड़ के नीचे सब भोजन रखवा दिया। हाथ जोड़कर वहाँ से चली आई। अगले दिन जब साम को जब भोजन रखवाने गई तो देखा भोजन ऐसे ही पड़ा था। बूढ़ी काकी को शक हुआ किन्तु वह कुछ ना बोली जाकर
रामशरण को बोलने लगी देख बेटा रामशरण मैं तुझे एक बात बता रही हूँ कि वास्तव में जो प्रेत वाली बात है वह झूठ है ये मुझे पक्का विस्वास है किंतु मैं चाहती हूँ कि तू इसका पर्दा फास करने में मद करे।
काकी तुम ये कैसे कह सकती हो कि तुम्हें इस बात का विस्वास है। देखो राम शरण प्रेत प्रत्येक दिन भोजन खा जाता है किंतु कल रात का भोजन ऐसे ही पड़ा है। अभी तुम सांत रहो बस आज रात में जैसे ही कहू वैसे ही करना। राम शरण बोला ठीक है काकी तुम साथ हो तो मैं बिल्कुल नही डरता भले ही सच में प्रेत क्यों ना आ जाये। फिर क्या था दोनो रात में भोजन पेड़ के पास भोजन रखकर छुप गए। करीब ग्यारह बजे चार नाकाब पहने भोजन खाने लगे। तभी बूढ़ी काकी ने अंधेरा होते भी पहचान लिया कि ये तो सन्तोष व उसके साथी है जो चादर ओढ़ कर अच्छे खाना खाने के लिए ये षड्यंत्र रचा था। फिर क्या था बूढ़ी काकी ने डंडा उठाया सभी को दे डंडा दे डंडा मारते मारते भगाने लगी। सब जैसे तैसे जान बचाकर भागे। सुबह सारा भंडा फोड़ दिया।
सब बूढ़ी काकी की निडरता व उनके बुद्धि की तारीफ करते नही थक रहे थे। फिर सभी ने पंचायत रखवा कर सन्तोष व उनके साथियों को गाँव में झूठ फैलाने व दहशत फैलाने के साजिश में 5 दिन तक पूरे गाँव को भोज कराने का आदेश दिया। फिर क्या था सभी ने जी भरकर बदला लिया। अब सब ख़ुशी से मिलजुलकर रहने लगे। लोगो का बूढ़ी काकी के प्रति प्रेम और बढ़ गया।

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