लेख - भारत-चीन-नेपाल संबंध

भारत-चीन-नेपाल संबंध

"आधुनिक युग विभिन्न राष्ट्रों के बीच बहुपक्षीय संबंधों का युग है।"

     अंतरराष्ट्रीय संबंध में विभिन्न देशों के बीच संबंधों का अध्ययन करते हैं। इसमें परस्पर संघर्ष के साथ ही सहयोगात्मक पहलुओं का भी अध्ययन किया जाता है। इसी तारतम्य में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत-चीन-नेपाल के पारस्परिक संबंधों की व्याख्या सार्थक होगी।
              विश्व व्यवस्था के दो बड़े राष्ट्र भारत व चीन राजनैतिक, आर्थिक, विज्ञान,प्रौद्योगिकी, रक्षा, पीपल टू पीपल कनेक्ट आदि के आधार पर हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा प्रबलता के साथ पूरे विश्व के समक्ष आया है। भारत और चीन के मजबूत संबंधों की पहल दोनों देशों की ओर से होती आ रही है। फिर भी दोनों देशों के मध्य सीमा विवाद के कारण आपस में उलझने बढ़ रही है। गालवान घाटी, दोनों देशों के विवाद का केंद्र बिंदु है। इसी के साथ पैंगोक झील, डोकलाम गतिरोध 2017, बेल्ट एंड रोड रेल संबंधी विवाद, सीमा पर आतंकवाद के मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव व समर्थन, परमाणु परीक्षणों का विरोध करना आदि भी विवाद के कारण बने हैं।
     नेपाल भारत का एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है और सदियों से नेपाल के साथ हमारे संबंध चले आ रहे है। भौगोलिक,सांस्कृतिक,आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक, रक्षा, आपदा प्रबंधन, संचार आदि संबंधों के कारण नेपाल हमारी विदेश नीति में भी विशेष महत्व रखता है। बौद्ध धर्म के मानने वाले नेपाली के लिए खास बात यह है कि बुद्ध का जन्म स्थान लुंबिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है। वर्ष 1950 की भारत नेपाल शांति और मित्रता संधि दोनों देशों के बीच स्वस्थ एवं मजबूत संबंधों का आधार रही है। भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता माना जाता है और यातायात पर भी कोई प्रतिबंध नहीं है। जहां नेपाल से संबंध अच्छे हैं वहीं दूसरी ओर नेपाल और भारत में विवाद की स्थिति भी बनी हुई है। नेपाल द्वारा आधिकारिक रूप से नेपाल का नवीन मानचित्र जारी किया गया जो उत्तराखंड के कालापानी, लिंपिया धूरा और लीपू लेखकों को अपने संप्रभु क्षेत्र का हिस्सा मान रहे हैं। भारत में नवंबर 2019 को एक नवीन मानचित्र प्रकाशित हुआ था जिसमें कालापानी को भारतीय क्षेत्र में दर्शाया गया है। इसके साथ ही हर छोटी बड़ी बात पर भी समय-समय पर विवाद की स्थिति निर्मित होती रही है।
       यदि भारत, चीन और नेपाल के आपसी संबंधों पर दृष्टिपात करते हैं तो पता चलता है कि तीनों देश आपस में गहरा संबंध रखते हैं तो उनमें विवाद की स्थिति भी बनती है। दक्षिण एशिया के देश नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि देश चीन की बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव परियोजना में शामिल हो गए हैं। चीन, भारत पर दबाव बनाने के लिए नेपाल से अपने संबंध सुदृढ़ करने में लगा हुआ है तो वहीं दूसरी ओर नेपाल भी अपनी बातों को मनवाने के लिए चीन का साथ पाकर भारत पर दबाव डालना चाहता है। चीन एवं नेपाल से जो भी समझौते भारत ने किए हैं उन पर वह पूर्ण सहयोग के साथ खड़ा हुआ है। अब मुद्दा यह है कि भारत-चीन-नेपाल के आपसी संबंधों का भविष्य क्या होगा?  अनसुलझी समस्याएं वर्तमान में मौजूद हैं उनको देखकर लगता है कि एक ओर इन देशों में आपस में प्रतिद्वंद्व है तो दूसरी ओर ऐतिहासिक मित्रता भी। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि भारत-चीन-नेपाल आपस में अपनी बातों को सुलझा कर मित्रता पूर्ण संबंध बनाने का प्रयास करें। जिसके परिणाम स्वरूप संपूर्ण विश्व में तीनों देशों की छवि सुधरेगी।इस मुद्दे पर जब हम गंभीरता से विचार करते हैं तो स्पष्ट होता है कि भारत को अपनी विदेश नीति की समीक्षा करने की भी जरूरत है। चीन की नीतियों को देखते हुए भारत को नेपाल के प्रति दूरदर्शी नीति बनानी होगी। वर्तमान में चीन के बढ़ते प्रसार को ध्यान में रखते हुए भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ दूरदर्शी संबंधों के आधार पर वर्तमान में सोच विचार कर फैसले करने होंगे। भारत-चीन-नेपाल को आपस में क्षेत्रीय मामलों पर समन्वय बढ़ाना चाहिए। आपसी मतभेदों का प्रबंधन शीघ्रता से निपटाना चाहिए। चीन के साथ भौगोलिक सीमा का सीमांकन एवं व्यापार को संतुलित अवस्था में लाना एवं नेपाल के साथ भी अल्पावधि में समस्याएं हल कर, मैत्रीपूर्ण सहयोग के लिए तत्परता दिखाना भारत का महत्वपूर्ण कदम होना चाहिए। इस प्रकार भारत दूरदृष्टि रखकर आपसी संबंधों को बेहतर बना सकता है। 

 "वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय संबंध के विषय को वैश्विक बनाने के प्रयास के लिए अधिकतर लोगों की राय बनती जा रही है ताकि संपूर्ण विश्व शांतिपूर्ण जीवन यापन कर सकें।"

                        डॉ. चित्रा जैन 
                            प्राचार्य 
             शा. हाई स्कूल मोहनपुरा उज्जैन
                      94066 48665
               chitrapjain@gmail.com

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