लाश(शव)

लाश(शव)

बेबस औ लाचार कि क्यों लाशें बिछी हुई है जमीन पर 
सभी लाशें तो किसी ना किसी के पहचान का ही होगा। 

इतनी लाशें देखकर भी किसी के आंखों में आंसू नहीं है
कैसा ये इंसान है जो किसी के चेहरे पर दुख भी नहीं है। 

इन लाशों के खून से तो अब धरती भी लाल हो चुकी है 
लगता है सबका खून अब खून नहीं पानी बन चुका है ।

क्यों ये  इतनी लाशें देखकर भी अभी तक चुप बैठे हैं
क्या इसको पता नहीं कि इसके बाद इसका ही बारी है।

क्यों ये इनके डर से सभी भिंगी बिल्ली बनके बैठा है इसके डर से ही मामूली सा इंसान दरिंदा बन बैठा है। 

जख्म भी ताजा है और खून भी अभी तक जमा नहीं है
जिंदा लोग लाशें बन गई है फिर भी क्यों सब मुर्दा ही है।

 इनके खून तो इसके शरीर में लगा हुआ ही दिख रहा है
 फिर भी लोग मूरत बन कर खड़ा चुपचाप देख रहा है। 

तुम्हारा लाश बनकर रहना एक दिन तुम्हें भी लाश बनाएगी 
आज हिम्मत नहीं किया तो वैसा ही दर्दनाक मौत तुम्हारा भी होगा?
©रूपक

Badlavmanch

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