सावन और साजन



"सावन और साजन "
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आ जा आ जा ओ! मेरे साजन,
हर पल तुझे बुलाए तेरी दुल्हन।
अब देखो आया ,मानसून,
तेरे बिना मुझको लागे सून।
धरती ने कीनी हरित श्रृंगार,
खेतों में आ गई मस्त बहार।
मदहोशी में झूमा आकाश,
लगी जागने मन में प्यास।
आ जा मेरे बलमा आ जा,
हृदय की प्यास बुझा जा।
झींगुर झिम झिम कर बजाता शहनाई,
सावन भी देखो लाया अपने संग पुरवाई।
मेहंदी रचा जा,यह आया सावन।
आ जा आ जा ओ! मेरे साजन ।
देखो बगिया है शरमाई,
बरखा भिगोए तन,
लगता ऋतु आई है ,
करने मधुर - मिलन।
अब तो आ जा परदेशी बालम,
आ जा आ जा ओ! मेरे साजन ।
नाचें मयूरी कर श्रृंगार,
करे मयूरा मन से प्यार!
बन गए हैं वो सुहागन।
तेरे विरह में मैंने साजन
सिन्दूर लगा,बनी सुहागन,
पल - पल जलती मैं रही ,
तिल तिल कर घुटती रही।
सांवरिया, मैं हो गई अभागन।
आ जा आ जा ओ! मेरे साजन।
पगडंडी पै संग चलूं मैं ,
तेरे संग किसान बनूं मैं ।
मैं तो हूं मदमस्त नाजुक कली,
तू बनकर आजा मस्ताना अली।
ढूंढ रही मैं तुझे यहां वहां,
तेरे शहर की गली - गली।
आ जा अब तो मेरे हृदय,
राह तके ये, मैं पनिहारिन
आ जा आ जा ओ! मेरे साजन...
आ जा आ जा ओ! मेरे साजन,
हर पल तुझे बुलाए तेरी दुल्हन।
अब देखो आया मौसम सावन,
आ जा आ जा ओ! मेरे साजन ।
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** एकता कुमारी, बाँका, बिहार।

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