इल्मो फ़न से ना वाकिफ आदमी जो होते हैं।।
बोझ वो जहालत का सारी उम्र ढोते हैं।।
फूल से खिलेंगे हम खुशबुओं से महकेंगे,
इस यकीन को हर शब काग़ज़ों पर बोते हैं।।
लफ्ज़ लफ्ज़ चुनते हैं मुफ्लिसों की मजबूरी,
कर्ब का हर एक मोती रात भर पिरोते हैं।।
दूर किस तरह होंगे दाग़ अपने चेहरे के,
हम भी अक़्ल के अंधे आईने को धोते हैं।।
हम उन्हें कहें जाहिल या कहें उन्हें आकिल,
संग लाख़ धरती पर आरजू़ जो बोते हैं।।
दिल पर दर्द के धब्बे बख़्शती है जब दुनियां,
दाग़ आईने के हम आंसुओं से धोते हैं।।
वृंदावन राय सरल सागर एमपी
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वृंदावन राय सरल सागर एमपी वरिष्ठ कवि एवं शायर आयु 70 वर्ष पांच किताबें प्रकाशित 40 साल साहित्य सेवा।। 250कवि सम्मेलन का अनुभव,40 विभिन्न सम्मान प्राप्त ।।
।।रिटायर इंजीनियर।।
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