कुंडलिया : आया साम्मण

आया   साम्मण   झूमकै,  बोलै  कोयल  मोर।
कड़ कड़ कड़कै बीजली,  घन गरजै घनघोर।
घन   गरजै   घनघोर,  शोर   करती   पुरवाई।
रिमझिम  बरसै  मेह,  धरा  की  पीस  बुझाई।
कहै  'भारती'  देख,  मेह   किसान   हरषाया।
झड़ी  लगावै  खूब,  झूम कै  साम्मण  आया।

 - भूपसिंह 'भारती', नारनौल (हरियाणा)

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