सद् बुध्दि और सद् ज्ञान के
**********दोहे ***********
======भाग-2=======
भोजन हो यदि संतुलित,गहन नींद जोसोय।
कर्म करे आगे बढै़ ,वह सच अनुपम होय।।
मन में मानवता बसे ,कर में बसे सुकर्म।
वाणी में माधुर्य हो ,यही सुमानव धर्म।।
सत्य धर्म सत्कर्म ही , जीवन का आधार।
सदाचार सुचि प्यार ही ,अग जग का है सार।।
हँसी खुशी सबके लिये,करता जो व्यवहार ।
मानव गुण ही सुवस है, महके इस संसार ।।
अहंकार आलस महा , अपना ही है काल।
फिर भीअपना सच समझ,बन जात है ढाल।।
मानव मर्यादा कभी , मत कर चकनाचूर ।
जाना है सब छोडकर ,इक दिन तुझे जरुर।।
सभ्यता व संस्कृति सुख,सुचि सुधर्म परिवेश।
हिन्दी से ही पायगा ,प्यारा भारत देश।।
हिन्दी ही हर कार्य में ,करें सदा स्विकार ।
यही शुध्द करती अहा,वाणी बुध्दि विचार।।
हिन्द कभी हिन्दी बिना,ना होगा सुशहाल।
यथाशीध्र समझे इसे ,बदले अपनी चाल ।।
जन जन यह सब जानकर,क्यों है बेपरवाह।
निज हितार्थ हिन्दी सदा भरती आज कराह।।
दिन दिन होती जा रही अंग्रेजी आबाद ।
इससे ज्यादा और क्या ,होंगे हम बर्बाद।।
जन मनको झुलसा रह,ईर्ष्या की कटु आग।
इसे बुझा सकते सखे ,मानवता मधु -राग।।
आज हमारे हो गये ,हर पल कडुवे बोल ।
रही नहीं सुख शान्तिअब,जीवन डाँवाडोल।।
दया धर्म सत्कर्म सब ,भूल गये सुख सार।
इससे दुख पाता सदा , देश गाँव परिवार ।।
हम जिसके जगमें नहीं ,हैं सचमुच हकदार।
सरेआम नित कर रहे, उसका ही बाजार।।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार)841508
मो0नं0- 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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