कवयित्री जयन्ती सेन जी द्वारा 'वो जिंदा होता..' विषय पर रचना

वो जिंदा होता.......

मैं यह हत्यारी तारीख याद नहीं रखना चाहती
पर कैसे भूल जाऊं वो खास था 
बहुत अजीज़ था
वो हँसता था तो फूल झड़ते थे
वो दिल के बहुत करीब था
वो हँसता था हंसाता था
वो सबके प्यार का प्यासा था
उसे और चाह थी औरों से
वो पूरे मन से प्यासा था
उसे ललक नहीं थी दुनिया पर
अपना धौंस जमाने की
उसे बहुत चाह थी इस दुनिया को
अपने गले लगाने की

फिर क्या हुआ तारीख क्यों
उसकी कदर ना समझ सका?
उससे उसका सब कुछ छीना
कुछ भी उसको दे ना सका
उसने तो कुछ नहीं
बस प्यार ही मांगा था
अपने लिए दुनिया का
विशवास ही मांगा था

कहाँ चूक हुई कहाँ गलत हुआ
सबने चेहरा क्यों मोड़ लिया?
'छोटे शहर का रहनेवाला ' 
कहकर उसका दिल तोड़ दिया
ये महानगर के दंभी
बस सरपट दौड़ लगाते हैं
दौड़ में कोई पिछड़ जाए
कब अपना हाथ बढ़ाते हैं?
वो अंधेरी गलियों में
बिना साथ के भटक चुका था
किसी ने यह न समझा
वो ज़हर गले तक गटक चुका था
किसी ने उसका हाथ पकड़कर
अपनी तरफ नहीं खींचा
क्यों उसके डरते दिल को
अपने सीने में नहीं भींचा?
काले बादल उसके मन में
उमड़ घुमड़कर आते थे
हाथ पकड़कर उसका वो
दूर कहीं ले जाते थे
तुम भी अपना हाथ बढ़ा कर
उसे छीन सकते थे
उसको डर से निजात दिला कर
उसमें तपिश भर सकते थे

क्या होता जो यह कर लेते
उसके मन में 'आग'भर देते
वो ऐसे ना चुपचाप मर जाता
कुछ कहता कुछ कहकर जाता
वो बीच हमारे जिंदा होता 
नाचता-गाता मन बहलाता
'
मैं जिंदा हूँ जिंदा हूँ ' कहता
और सचमुच आज वो जिंदा होता ।।

जयन्ती सेन 15-6-20
9873090339

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ