सद् बुध्दि और सद् ज्ञान के
******** दोहे *********
===== भाग-3 ======
सदाचार उपकार से ,हो कर कोसों दूर ।
इतने ऊँचे हो गये , तरु बन गये खजूर।।
सदाचार सदभाव से , होय देश आबाद ।
डूब स्वार्थवस झूँठ में ,क्यों होते बर्बाद।।
जगमें जो छिनता रहा ,जन-जन काअधिकार।
पाता अधोगति अपयश ,नाश नर्क धिक्कार ।।
समता सुख कारक सदा ,परम अनूठा ताज।
जन-जन को यह दे रहा,सब खुशियों का राज।।
नेकी धर्म ईमान की ,दिखलाता सत राह ।
पुण्य परम बाढ़त सदा ,नाशत सकल गुनाह।।
भला -बुरा जग में सदा ,जैसै है दिन-रात।
बुरा छोड़ लख गुण मना ,कर हित की तू बात।।
कर्मन की है गहन गति ,मति निज मना सुधार।
वैतरणी भवसिन्धु की ,यही बनत पतवार ।।
पर दुख से गमगीन हो ,हीन भावना त्याग।
मित्र बनाता शत्रु को ,ऐसा है अनुराग ।।
निज करनीफल पाय सभी,इससे बंचान कोय।
कर्म किये पर रे मना,फेर बदल क्या होय ।।
छूटेगा तो एक दिन ,धन दौलत संसार ।
मिल जाना है शून्य में ,इस पर करो विचार।।
जबतक सासें चल रही ,सब कुछ है अधिकार।
सदुपयोग कर लो मना ,क्यों करते बेकार।।
यश कलंकअपयश सदा,है अवगुण की खान।
बहिष्कार करिये मना ,बने जगत पहचान ।।
गया समय सो मर गया,बाकी बचा सुधार।
प्यार परम पावन मना, छोड़ सकल तकरार।।
अन्त समय जाता नहीं ,कुछ भी अपने साथ।
चुक हुक देता सर्वदा ,बस पछतावा हाथ।।
सब कुछ है हरि का सदा,ना कुछ अपने पास ।
हो सचेत समझो इसे ,बन जाये इतिहास।।
कल क्या हो किसे पता ,समय ना कर बर्बाद।
प्रेम श्रध्दा विश्वास से ,कर श्री हरि को याद।।
कर्म भूमि कर्तव्यमय,महके पा सुचि प्यार।
परहित परमारथ भरा ,करो अमित उपकार।।
जाना है सब छोड़कर ,रहता नेकी नाम ।
वही सनातन सत्य है ,कविवर बाबूराम।।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम-बड़का खुटहाँ ,पोस्ट-विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला-गोपालगंज ( बिहार )
मो0नं0- 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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