कवि रूपक जी द्वारा 'गरीबी' विषय पर कविता

हमारा गरीबी........

क्या हमारा गरीब रहना ही हमारी किस्मत है?......
क्या इसमें हमारे अपने का कोई दोष नहीं है?........

हमारे अपने ही तो सत्ता की चाटुकारिता करते है।
हमारी गरीबी पर कुछ अपने ही खुशियां मनाते है।

हमारी तरक्की से जलने में सूर्य भी कम पर जाते है।
हमारी दरिद्रता से इनको एक अजीब ही खुशी होते है।

हमारी खुशी देखकर इसकी क्या क्या मरने लगते है।
जैसे लगता है इसकी खुशी को हम ही लूट लेते है ।

हम नेता को चुनकर सत्ता में  दुख दूर करने भेजते है।
वहां पहुंचकर वो खुद ही अपना खुशी मनाने लगते है।

भूलकर हमारी तकलीफों को वो मस्ती में लग जाते है।
वहां जाकर वो हमारी तकलीफों को बोलने के बदले 
उसकी ही जुबान बोलने लग जाते है।

किस्मत भी हमारे साथ अजीब ही खेल खेलने लगते है।
किसी को खूब हसाते है और गरीबों को खूब रुलाते हैं।

क्या सच में हमारा गरीब रहना ही हमारी किस्मत है?
क्या इसमें हमारे अपने का सच में कोई दोष नहीं है?....
©रूपक 

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