कवि गौरव मिश्र तन्हा जी द्वारा 'मन में कटुता फैली' विषय पर रचना

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विषय- मन में कटुता फैली
शीर्षक - मैले मन के तन के भोले
                  हमने तो केवल राय रखी
             और तुमको कड़वी लग गई है।
फिर तो है अंदर जहर भरा
अंदर की ईर्ष्या जग गई है।
                       रह जाता है यहां पर कोई 
                        घूंट पी कर अपमान का ।
तुमको ठेश पहुंचेगी जब
मजाक बनेगा तेरे सम्मान का।
                       अंदर से कितने निर्मल हैं 
                  यह बतलाती है उनकी शैली।
हर एक से हंस कर मिलते हैं
मगर मन में है कटुता फैली।
                   सत्य कहा है और जीवन भर
                  कलम से अपनी सत्य कहूंगा। 
मात शक्ति का अपमान करोगे
'तन्हा' उनको बिन टोके मैं न रहूंगा।
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✍️✍️गौरव मिश्र तन्हा

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