मंच को नमन
शार्षक- भारती पुकारती
जागो जागो वीर भारती पुकारती
प्रकृति का ध्वंस देख भारती निहारती
रोकिए विनाश को हरे वृक्ष मत काटिए
हो सके तो वृक्ष की संतति बढ़ाइए
चीख चीख कह रही साफ बात टहनियां
प्रदूषण मुक्त आप वायु को बचाइए
मानवी क्रूरता से भारती कराहती
जागो जागो वीर भारती पुकारती
मत करो सरि को दूषित कूड़ा डालकर
पूजता जगत जीवन दायिनी मानकर
बूंद-बूंद जल बचाइए भविष्य के लिए
मत बहाना आप पानी जानबूझकर
व्यर्थ जल दोहन देख भारती कांपती
जागो जागो वीर भारती पुकारती
अब तो छोड़िए स्वार्थवादी नीतियां
कह रही है माणिक पिघलती चोटियां
यदि अभी न संभले तो निश्चिय अनंत है
अब तो तोड़ फेंकिए अंधभक्ति की बेड़ियां
सुरक्षा वचन आज फिर भारती चाहती
जागो जागो वीर भारती पुकारती
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
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