तम का विनाश करने सुभाष चल दिया आजादी का लक्ष्य ले सुभाष चल दिया

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रचना का शीर्षक -सुभाष

तम का विनाश करने सुभाष चल दिया
आजादी का लक्ष्य ले सुभाष चल दिया

जो सो रहे थे शेर बैठे मांद में
सहमे हुए थे जो तम के प्रमाद में
वीर वीरता का मंत्र लेकर चल दिया
आजाद हिंद के लिए सुभाष चल दिया

लाखों जवान साथ में उनके चल दिए
हंसते दांत दुश्मन के करने चल दिए
आजादी के रंग में वो रंगने चल दिया
गौरों का सर कुचलने सुभाष चल दिया

गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया
विपरीत हवाओं का रुख मोड़ दिया
आजाद भगत से योद्धाओं के संग चल दिया
स्वाधीनता के लिए सुभाष चल दिया

कोसों दूर थी नींद उसकी आंख से
टपक रहा था लहू उसकी आंख से
वो दर्द मातृ भू का हरने चल दिया
अंगार भर आंख में सुभाष चल दिया

उधम सिंह पटेल जी का नाम बढ़ाकर
देश को स्वतंत्रता का पुष्प चढ़ाकर
फहरा के तिरंगे को सुभाष चल दिया
आजादी सौंपकर के सुभाष चल दिया

वो राष्ट्रभक्ति के लिए कुर्बान हो गया
वो वीरता का नव इतिहास लिख गया
फिरंगियों का मानमर्दन कर के चल दिया
मान रख के देश का सुभाष से चल दिया
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक) कोंच,जनपद-जालौन- उत्तर -प्रदेश -285205

Badlavmanch

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