जुनून से प्राप्ति तक

बदलाव मंच
1/8/2020

 जूनून से प्राप्ति तक
(एक प्रेरणा से परिपूर्ण कथा भाग 1)

स्वरचित कहानी।

प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार

एक लोटा जल ले ही लिया तो क्या हो गया।
अरे हमने चोरी थोड़े ही किया है। क्या कहते हो काका मैं ठीक ही कहता हूँ ना!अब अरबों की संपत्ति में से जो विधानन्द भैया के पास है उसमें से दो चार हजार निकाल ही लिया तो क्या हो गया।
यह कहते हुए अमित ने बीस हजार रूपये तिज़ोरी से निकाल कर चलते बना। भैरव काका जो कि ये सब आँखों के सामने होते देख रहे थे। कुछ ना बोले सोचने लगे कि हो ना हो अमित आजकल जुआ या शराब  पिने लग गया है। जब देखो अपने बड़े भाई के तिज़ोरी में से पैसे निकालता रहता है। अब ऐसा कौनसा काम करता है जिसमें नाहक़ ही इतने पैसे खर्च कर देता है। अब इसको कौन समझाए की पैसा कोई पेड़ पर लगता तो है नही झट तोड़ा झड़ आ गए। अरे पैसे कमाने के लिए तो ढेरो सिर खपाना पड़ता है। तब कही जाकर पैसे कमा पाते है। यहाँ विधानन्द तो जान लगा दिये छोटा सा था जब विधानन्द के माता पिता ट्रेन हादसे का शिकार हो गए। उस समय विधानन्द व अमित दोंनो छोटे छोटे थे। लेकिन विधानन्द
हार नही माना, पिता के 500 रूपये की सम्पति को को बेचकर अपना खुदका प्लास्टिक पैकिंग,कारोबार को सुरुआत करा।फिर कड़ी मेहनत के पश्चात आज के समय में उसके पास ऐसी कोई चीज की कमी नही जो दूसरे कारोबारियों के पास हो। आज के समय में भला अमित का इस तरह पैसों को नाहक़ बर्बाद नही करना चाहिए। एक जमाना था। जब लोग दूसरे के द्वारा दावत में भी तृप्त होने पर दो चार बीघा जमीन युही उसके नाम कर देते थे किन्तु अब वह समय कहाँ।भैरव काका को ख्याल आया कि आज तो विद्यानन्द को याद भी ना होगा कि उसे आज रात नचनिया देखने बचकुन चौक जाना है। अबतो केवल यही अच्छा होगा कि विधानन्द को जाकर उसे बता दिया जाए व हाँ अमित के बातों से भी अवगत करवा
दे तो अच्छा हो।भैरव काका भले ही पिता ना थे किंतु उससे भी गहरा रिश्ता था उन दोनों का। वह गए और जाकर उससे बोला अरे बेटे चलो चला जाये आज फूलमती का नाच देखने
चला जाये लगता है भूल गया तू की आज फूलमती आने वाली है। चलो जल्दी से समियाने में बैठने को सीट भी ना मिलेगी मुझे। तुम्हे तो स्पेसल सीट मिलेगा बैठने को एक जमींदार के साथ उधोगपति भी हो, साथ ही साथ एक अध्यक्ष भी बन गये हो। फिर क्या था विद्यानन्द बोल पड़ा चालाकी ना दिखाओ काका आपको भलीभाँति ये पता है कि मै हमेशा अपने बगल वाले सीट पर बैठाता हुँ। चलो चलते है तुरन्त चन्दन को आवाज लगाया कि चन्दन कार निकालो जल्दी हमें नाच देखने जाना है,जी मालिक निकालता हुँ। वह तुरंत कार लेकर चल देता है। चन्दन आगे वाले सीट पे बैठा है व दोनो पीछे की सीट पर बैठ गये। अरे चन्दन मैने सुना है कि तुम्हारा बेटा आई एस ऑफिसर की तैयारी कर रहा है।स्मृति मैडम का सन्देसा आया था। क्या ये सत्य है,जी मालिक वो क्या है कि जिद्द करने लगा कि मैं आईएस की तैयारी करूँगा तो मैंने बोल दिया ठीक है अपने को बेच दूँगा किन्तु तुझे पढाऊँगा ये सुनकर विधानन्द मन से गदगद हो गया। बोला अरे चन्दन देह मत बेच कल मुझसे पैसे ले लेना ठीक है संकोच ना करा कर भाई तू मेरे लिए अमित के सामान ही है समझा की नही। तीनों फिर गाँव की हालात पर चर्चा करने लगे व चन्दन कार चला रहा था। अरे काका आप गाँव का हाल बताओं क्या हाल है अपने गाँव का मैं तो शहर में ही खोया रहता क्या करूँ कारोबार को लेकर बार बार जाना पड़ जाता है। भैरव काका ने चुनौटी से तंबाकू निकालते हुए बोले, सब ठीक है बेटा किन्तु आजकल तो जहां तहां केवल शोषण ही होता है तुझे पता है ना कल की बात लो मैं कजरिया के घर पर देखा कि कजरिया बाहर बैठी है। विधानन्द बोला तो इसमें क्या शोषण वाला बात है। अरे बेटा तुझे पता नही है क्या कजरिया एक छोटे जाती का महिला है ना हरिजन तो उसने एक ब्राह्मण के बगल में घर लिया था। उसके पति ना थे तो बेटी के संग काम करके गुजारा करती थी। ये ब्राह्मण को पसंद नही आया झूठा झूठा बोलकर कमरा मकानवाली से खाली करवा दिया।बेचारी अचानक से कहाँ घर से मिल जाता है इसलिये तीन दिन से बेचारी धूप छाँव सहती रही बाहर उसी बिस्तर पर सब रहना बैठना सोना  करती रही। फिर क्या बहुत खोजने के बाद उसे कमरा मिल ही गया। किन्तु ब्राह्मण ने उफ़्फ़ भी ना जाहिर किया।इस तरह के जो भी समाचार था उनको तीनो आपस में एक दूसरे से सुनते सुनाते हुए जा रहे थे। इस तरह बीस किलोमीटर का रास्ता कब तय हो गया पता ही ना चला।चन्दन बोला मालिक लो आ गये।तीनो उतरे पान के दुकान पर पान खाये फिर तीनो उस पंडाल की ओर आगे बढ़े तभी कुछ लोग सब चिल्लाने लगे।
विधानन्द महोदय आईये आपका स्वागत है। विद्यानन्द जी आपके कारण ही हमारे गाँव का विद्यालय का रंग रूप बेहतर परिवर्तन हो पाया। आपको नमन ह्रदय वंदन। तभी कुछ लोग आगे आकर बाकी लोगों को अलग करने लगे चलो जाने दो हटो। विद्यानन्द जी भैरव काका के साथ साथ पंडाल में पहुँचे।
सभी को नमस्कार अभिवादन स्वीकार कर सबको नमन किया। फिर सभी बैठ गये सामने से पर्दा उठता है कुछ लड़कियों के साथ फूलमती है जो देख कर शायरी अदा करती है वो कहती है।
 तेरे ईश्क में मेरा दिल
 मचलने को तैयार बैठा है। 
कि मेरे आँखों के आगे तेरा सब
 पैतरा हुआ बेकार बैठा है।।
तू कहेगा तो जान तक
 दे दूँगी सच में बलमा।
जिसके आगे झुकता है है गाँव जिला 
देखो दुनियां वाली वो आज
 मेरे ईश्क में हुआ बीमार बैठा है।।

तभी सभी कहते है। वाह रे फूलमती क्या शायरी मारी है।
वाह वाह मजा आ गया। कसम से सच में मजा आ गया।।
सभी फूलमती का नाच देखने लगते है। फूलमती की अदा में एक कसक है जिसे देख विधानन्द का मन उसके नजरों से घायल होता जा रहा था। फिर क्या था। वह उसके आँखों में मानो डूबते जा रहा था। अंत में सबने खूब तालियां बजाकर उसके नाच को सम्मानित किया कि वह लोकनृत्य हो तो फूलमती का, ना तो ना हो।बिल्कुल दिल खुश कर दिया। पीछे से कोई कुछ अनाफ़ स्नाफ बक रहा था विद्यानन्द ने सुना तो तुरंत बाहर करवा दिया। कार्यक्रम के अंत में विद्यानन्द को मंच पर बुलाया गया फिर क्या था लोग सभी शांत होकर सुनने लगे। विधानन्द: मैं सभी लोगो का आभार व्यक्त करता हूँ कि आप सबने मुझे कार्यक्रम के अंत में कुछ बोलने का भार दिया। सबसे पहले तो सभी लोगो का ह्रदय वंदन व नमन। मैं 
साथ ही साथ मूलमती जी को नमन करता हूँ कि लाज शर्म को बचाते हुए लोकगीत के द्वारा लोकनृत्य के द्वारा हम सभी को आनन्द की अनुभूति प्रदान करती है। आप देश को अपने मिट्टी से जुड़ने का जो उपदेश दिया है वह अद्वितीय है। आज हमें अपने संस्कृति से जुड़ना बहुत जरूरी है। हम आपके कायल है आपका जब भी प्रोग्राम होता है तो पैर मानों स्वयं खिंचे चले आता है। मैं आप सभी लोगों के समक्ष फूलमती जी को तीन लाख रूपये का चेक उनको भेट स्वरूप प्रदान करता हूँ। व उनको धन्यवाद देता हूँ उनकी इस असाधारण प्रतिभा के लिये। फिर क्या था मानों तालियों की गड़गड़ाहट से पूरी महफ़िल गूँज पड़ी। सभी विधानन्द की जयकारे लगाने लगे।
फिर फूलमती ने चेक लेकर मुस्कुराते हुए विधानन्द को धन्यवाद किया। सभी धीरे धीरे अपने घर की और चल पड़े।
फिर चलते समय भैरव काका बोल पड़े, बेटा विधानन्द तुम इतना भी ना खर्च कर लो जो आगे चलकर समस्या आये।
जरूरत से ज्यादा दान देना बिल्कुल ठीक नही होता है। अरे काका आप तो जानते ही है कि ये पैसे इन्ही लोगों से कमाया है। अब इनको कुछ दे ही दिया तो क्या हो गया। सबकुछ यही छूट जाना है और फिर ये भी तो अपने है।ना मुझे कोई ऐसी लत है ना ही कोई आमदा जो पैसे खर्च हो।अब अमित भी कमाने लग जायेगा फिर पैसा तो हम दुगुना कमा लेंगे। भैरव काका बोलने लगे,बेटा तू इतने कम समय में जो कर दिखाया है वह काबिले तारीफ है किन्तु बेटा एक उद्योगपति के लिये 
पैसे खर्च करना चाहीये किन्तु लिमिट में। बाकी मुझे तुझपे गर्व है।आज भी मुझे याद है जब बचपन में तूमने मेरे कमरे को किराए पर रहने के लिया था। व कुछ ही महीने में मुझे काका का दर्जा दिया व अपनी संपत्ति को बेचकर ये व्यवसाय खड़ा किया। आज मैं जीवन में ईस्वर को धन्यवाद करता हूँ कि मेरा एक बेटा छोड़कर विदेश चला गया था व वही बस गया। किन्तु उसी के जगह दो बेटे भेज दिया। ये मेरे लिए एक वरदान से कम नही है।अब मुझे ईस्वर से कोई शिकायत नही है। बिल्कुल नही। बेटा नमन है तुम्हे व तुम्हारे ज्ञान को। जो काम बड़े बड़े लोग नही कर पाते तूने कर दिखाया स्वयं के साथ दूसरे लोगों का भी जीवन सफल बना दिया। अरे काका अब मुझे झाड़ पर मत चढ़ाओ। देखों ये आपके सहयोग से ही सम्भव हो पाया है। दोनों घर जाकर देखा तो अमित जाग रहा था,वह भैरव काका को भाई के साथ देखा तो डर रहा था किंतु 
भैया के प्यार से बात करने पर उसे महशुश हुआ कि सायद काका ने कुछ नही बताया है भैया को। फिर तीनों खाना खाये व सो गये।

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