🌾गीत 🌾
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कलि में कैसे धर्म बचेगा....
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छल -कपट, व्देष, दम्भ कलुष का जन-जन मैं संचार हुआ है।
कलि में कैसे धर्म बचेगा अस्त -व्यस्त संसार हुआ है।।
सज्जन भी कलियुग में मित्रों,
दुर्जन दिग्गज आज बना है।
पदलिप्सा और निज स्वार्थ में ,
अन्दर -बाहर खूब सना है।
सत्य पड़ा है चुप्पी साधे, मानवता बिमार हुआ है।
कलि में कैसे धर्म बचेगा अस्त -ब्यस्त संसार हुआ है।
बिना अर्थ के माऩव कैसा?
मानवता को लाना होगा -
प्यार एकता की डोरी में,
सबको अब बँध जाना होगा।
प्रेम सत्य विश्वाश बिना कब, जगती का उध्दार हुआ है।
कलि में कैसे धर्म बचेगा अस्त -ब्यस्त संसार हुआ है।।
जर्जर वीणा के तारों को
फिर से तुम्हें सजाना होगा।
अन्तरध्वनी से जनमानस को,
दीपक राग सुनाना होगा।
निष्ठा की रोली चन्दन से, माँ का नित श्रृंगार हुआ है।
कलि में कैसे धर्म बचेगा, अस्त -व्यस्त संसार हुआ है।
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✍️बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला -गोपालगंज (बिहार)
पिन -841508
मो0नं0-9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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