प्रसिद्ध कवि बाबूराम सिंह जी द्वारा रचित दोहे

सद् बुध्दि  और  सद् ज्ञान  के 
********दोहे ************** 
                        भाग - 1
वैभव  यौवन  रुप  बल ,नहीं अंत तक साथ।
सदुपयोग  जो  भी करे,स्वर्ग  उसी के  हाथ।।
चलकर इसपर ही मिलै,जीव जगत को चाह।
अतुल  अथाह  अकूत है,नेकी भल की राह ।।
अंत भले का ही भला,हो  नित भल में  वास।
भव्य   भलाई   से  भरे,पावन  पुण्य उजास ।।

सर्वोपरि मानव धरम ,कर नित विधि निर्वाह।
जो कुछ जग में हो रहा,कर उसकी परवाह।।
सबसे  ऊँची  बात  यह, सबसे प्यारा  राग ।
प्रेमातुर  रहकर  मना,कर हरि से अनुराग।।
अंत  समय  सर्वत्र  हो ,सब लेते मुँह  मोड़ ।
लोभ मोह तजकर मना,हरि से नाता जोड़।।

आवागमन अगाध है ,साध मोक्ष का व्दार ।
मनुवा  मानव योनि  यह ,मिलै न बारम्बार।।
अटल  सत्य यह है सदा,अंत न अपना कोय।
समयअभी सम्भल मना,हरिभज हरिका होय।।
मैं  मेरा  में   फँस  मना ,करे  समय बेकार ।
तू  तेरा   ही  जान   कर ,होगा भव से पार ।।

बिगडी़ सब पल में बने,पावत अविचल धाम।
जिस मुखसेअंतिम घडी़, निकसत हरिका नाम।।
सत्पथ पर चलकर मना ,मिलता सुख भरपूर ।
सत्य   धर्म   से  जो  गिरे ,होवत चकनाचूर।।
आदि  सत्य  सौंदर्य  है ,इसके   रुप अनेक ।
मानवता सदगुण लिये ,अनुप धनी बल नेक।।

*************************
बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम-बड़का खुटहाँ ,पोस्ट-विजयीपुर(भरपुरवा)जिला-गोपालगंज ( बिहार )
मो0नं0- 9572105032
*************************

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ