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कविता
*कुछ पल ही सही*
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भू मंडल पर सबका,
अपना अपना खेल।
कुछ पल ही सही पर,
रखना सबसे मेल।।
भौतिकवादी सत्ता,
हमें नाच दिखाये।
कुछ पल ही सही पर,
इसे दूर भगाये।।
मात पिता से बढ़ा,
दूजा नहीं है और।
कुछ पल ही सही पर,
मनभावन वो ठौर।।
संस्कृति छटा निराली,
देख देख हर्षाती।
कुछ पल ही सही पर,
संकट दूर भगाती।।
धरा पुत्र मतवाला,
मेहनत की खाता।
कुछ पल ही सही पर,
मंगल गीत गाता।।
©®
रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा (राज.)
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