शीर्षक - अहिंसा और कायरता मैं फर्क करो
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अहिंसा और कायरता में फर्क करो
हिंसा और रक्षार्थ वीरता मत मिक्स करो
शपथ अहिंसा की गांधी ने, गीता हाथ में लेकर खायी थी
अर्जुन ने गीता सुन कर, युद्ध क्षेत्र में हाहाकार मचाई थी
अहिंसा के कुछ पुजारियों ने, भारत मां का आंचल फाड़ दिया था
जिसकी रक्षाहित वीर सपूतों ने,अपना सब-कुछ वार दिया था
विजयी होकर भी हम हार गये थे, सौदेबाजी की बलि बेदी पर
जिस महापाप की पीड़ा अब तक, भोग रहे हम कुछ लोगों की अय्याशी पर
काली खप्पर वाली मुझ में, महिषासुर मर्दनी वन कर आ जाओ
राष्ट्र सेवा ही मेरा प्राण धर्म हो, महाकाल वन छा जाओ
धूल चटा दो उन आतंकी को,जो देश में घुस कर घात करें
जीभ काट लो उन शवानो की,जो भारत में रह कर विरोध करें
संयम मेरा सागर जैसा, क्रोध हमारा अनल प्रचंड
साधक हैं हम अतुल शक्ति के, पर्वत करते खण्ड खण्ड
जो शैतानों से कर्म करें, रखें टिट्भभि सा अपार घमंड
जो भस्मासुर बन गये ,वो डरेंगे क्या
बातों से
बृहमासतृ अचूक चलाओ ऐसे, खण्ड खण्ड हो जाये घमंड
अहिंसा और कायरता में फर्क करो
हिंसा और रक्षार्थ वीरता मत मिक्स करो
चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
अहमदाबाद , गुजरात
भारत माता की जय
वन्दे मातरम्
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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक है
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