22/8/2020
स्वरचित रचना
ये भारत है अपना ये भारत है।
जिसके कण कण में दिखता
आनन्द व शहादत है।।
दिखता इंद्रधनुष के रंगों से सात धर्म।
जिस भूमि पर मात्र पूजे जाते है कर्म।।
उसी धरा की सेवा में जीवन गुजरे
केवल यही ह्र्दय से मेरी चाहत है।।
राम से जहाँ रामायण मिला है
भेदवभाव मिटाने का सन्देश दिया है।।
कृष्ण से धर्म राह पर चलने को
जहाँ मिला महाभारत है।।
सूरज चाँद की भी जहाँ पूजा होती।
जहाँ मातृत्व की निर्मल धारा बहती।।
ऐसे पुण्य भूमि को प्रणाम हमारा
ये तो केवल पूजने के लायक है।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार
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