कवयित्री कीर्ति जायसवाल द्वारा रचित सुंदर रचना💐💐

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 *आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ। प्रस्तुत है प्रथम पूज्य ईश्वर पर मेरी रचना*
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*अहम् भरा जो निमंत्रण आया*
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*अहम् भरा जो निमंत्रण आया*
*शिव जी ने गणपति को बुलाया,*
*गणपति ने जाना स्वीकारा* 
*फिर कुबेर घर लौट चले।*

*गणपति ने शुरू भोज किया है,*
*श्रीफल खा के पेट भरा न,*
*खाएं राशन पेट भरा न,*
*बर्तन सारे निकल गए।*

*खायी रसोई पेट भरा न,*
*खाएं गोदाम पेट भरा न,*
*गहने खाएं पेट भरा न,*
*बोले अब तुझको खाऊंगा।*

*थे कुबेर को प्राण बचाने,*
*शिव जी के वह द्वार पधारे,*
*बोले(शिव जी)  पान खिला दो*
*उसको खा कर भोजन पूर्ण मानते।*

*अब कुबेर का अहम् है चूर,*
*गणपति का भोजन भी पूर्ण*
*पर गणपति का पेट भरा न,*
*है कुबेर को क्षमा किया।*

*- कीर्ति जायसवाल*
*प्रयागराज*

(कुबेर को अपनी धन-संपत्ति का बहुत घमंड था। अपना धन-वैभव को दिखाने के लिए उसने शिवजी को भोजन के लिए आमंत्रित किया। अर्न्तयामी शिव जी ने निमंत्रण में गणेश जी को कुबेर का घमंड को दूर करने के लिए भेजा। गणेश जी जब निमंत्रण पर गए तो वे सारा भोजन चट कर गए। सारा भंडार कुबेर का खाली हो गया परंतु गणेश जी का पेट न भरा। पर सच तो यह था कि माँ पार्वती के द्वारा खिलाए गए एक कौर से ही गणेश जी की भूँख शांत हो जाती थी। फिर गणेश जी गुस्से से बोले- तुम मुझ एक को ही तृप्त नहीं कर सकते!  मेरी भूख शांत न कर सके तो कुछ न मिलने पर मैं तुम्हें खाऊंगा। अपने प्राण संकट में जान कुबेर भागते हुए शिवजी के पास गए,  शिवजी ने कहा पान से भरी थाली गणेश जी को दे दो। पान खा लेने के बाद भोजन पूर्ण माना जाता है। गणेश जी को कुबेर ने पान खिलाया, उनका भोजन पूर्ण मान लिया गया पर गणेश जी की भूँख शांत न हुई थी। कुबेर का घमंड चूर हो चुका था। गणेश जी ने कुबेर को क्षमादान दे दिया।)

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