कब सुधरेगा अपने वतन का हाल।


वर्षों बीत गये यारों ,मिली हुई आजादी को, 
फिर भी रोक न पाए उपवन की बरबादी को।
महँगा हुआ राशन पानी,और दुर्लभ हुई दवाई, 
क्या इसीलिए वीरों ने अपनी जान लुटाई।‌
कई लालच के खंजर  ने मिलकर  सपनों का खून किया, 
तडप-तडप कर समय के पहले तरुणाई को छीन लिया।
मर जाती है कोख में नन्हीं सी जान।
धूमिल हो गये भोली जनता के अरमान।
चुनावी रैली में करते लंबे चौड़े वादे, 
लेकिन मन में रखा करते ये कुटिल इरादे।
छीन गरीबों के निवाले अपनी जेबें भरते जाते, 
कई सफेदपोश काली कमाई को सफेद बनाते।
महाभारत छिड़ा है फिर से, होते बुरे करम, 
खो दिए सारे धर्म-कर्म, और हया-शरम।
खड़े हुए गली-चौराहे पर दुष्ट दुशासन, 
राजनीति पंगु हुई और छा गया कुशासन।
तिरंगा भी पूछने लगा है अब हमसे ये सवाल, 
कब सुधरेगा अपने वतन का हाल।
यह सब देख-सुन कर आत्मा व्यथित हो कल्पाती है, 
होकर कुपित मेरी कलम यथार्थ का चित्रण कर जाती है।
इससे तो अच्छी थी गैरों की गुलामी, 
जो मिट कर रहे हमेशा समय के हामी।
यूँ व्यर्थ न होती शहीदों की कुर्बानी, 
आंखों में जिनकी मरा शर्म से पानी।
वो गैर थे, तो जुल्म सितम कर हमे थे सताते, 
लेकिन यहाँ अपनों के द्वारा खंजर घोंपे जाते।
सफेदपोश वाले गली-गली में देशभक्ति के नारे लगाते हैं, 
अपने स्वार्थ के खातिर यही लोग दंगा भी करवाते हैं।।
ये खादी वाले खुद को राम तो कभी घनश्याम बताते हैं, 
लेकिन ये रावन- कंस बनने में भी बिल्कुल नहीं सकुचाते हैं।
ग़र तुम सच्चे राम-श्याम हो तो अयोध्या-मथुरा बनकर दिखलाओ, 
अमन चैन कायम कर अपने देश को काशी जैसा तीर्थ स्थान बनाओ।
देश की सम्पति रेलवे-बिजली का अब होने लगा निजीकरण, 
आकर कोई ,रोजगार का भी बना दो थोड़ा समीकरण।
जनता की पेंशन बंद की,कैसी क़यामत ढायी, 
लेकिन नेताओं का पेंशन साल- दर - साल बढ़ाई।
मंदिर - मस्जिद करके असली मुद्दे से भटकाते हो क्यों?
चिकनी चुपड़ी बातों में उलझा कर आपस में लडाते हो क्यों?
कोई रामभक्त स्वयं को कहकर हनुमान की जाति बताते हैं।
कोई यहाँ पर देशप्रेमी कहकर गोडसे को देशभक्त बताते हैं। 
ज्ञान के मंदिर में ये भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाते हैं, 
शहीदों की शहादत पर घर बैठे ही सियासत कर जाते हैं।
ऐसी ओछी हरकत कर राष्ट्र को क्षति पहुंचाते हैं, 
मौका मिलने पर देश का मान  दाव पर लगाते हैं।
अरे!पाकिस्तान चीन क्या है?यूँ चुटकी में निपट जाएँगे, 
मेरे वीर जवानों के सम्मुख हमेशा मुँह की खाएंगे।
घर में छुपा बैठा है जो गद्दार ,
रावन से पहले उसे जलाएँगे। 
मरते दम तक हम,
अपनी भारत माता की लाज बचायेंगे।
तुम्हीं बताओ, ओ! सत्ता के सौदागर, 
ये कैसी आजादी है? 
आखिर ये कैसी आजादी है?
जहां हो रही बर्बादी है।। 
ये मेरी कलम की ही आगाज नहीं सिर्फ, 
जन-जन की भी यही आवाज़ है-2
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         * *एकता कुमारी, बिहार **

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