👨👧मेला👨👧
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दुनियाँ है एक सुंदर सा मेला ,
यहाँ खेल-तमाशा है अलबेला।
जो आया मेले के सफर में,
जाना भी है उसकों अकेला।
मोह-माया रिश्तों के जाल में,
फर्ज निभाकर सुख-दुख झेला।
शाश्वत-सत्य है जीवन-मरण ,
निभाकर निज कर्मो का झमेला।
दुनियाँ है एक नाट्य रंगमंच,
अपना पार्ट अदा कर नाटक खेला।
सांसारिक खेल में उलझ-उलझ कर,
सारा जीवन किया कुकर्मो से मैला।
दुनियाँ में तू लेकर आया था,
जीवन निर्मल श्वेत और उजला।जन्म-जन्म से दुनियाँ के मेंले में,
जीवन - निर्वाण का खेल-निराला।
मानव-कर्म है परहित परसेवा,
छल-कपट झूठ का करकें बवेला।
क्षणभंगुर नश्वर जीवन है चार दिनों का,
रह जायेगा दुनियाँ के मेले में तू अकेला।
करकें सफर एक दिन थक जाएगा,
छूटेगा संसार का मेला, कर्म रहेगा फैला।
💝समाप्त💝
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स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका-शशिलता पाण्डेय
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