कवयित्री नेहा जैन जी द्वारा 'सपना' विषय पर रचना

माना  जीवन एक अथाह  समंदर है जिसमे लहरें गिरती पड़ती है 
पर तलाशोगे अगर शिद्दत से तो सीप मे मोती  मिल  जाएगा 
अथक अनवरत चलते रहो कर्म पथ पर संघर्ष का फल मिल जाएगा 
लक्ष्य अगर है जीवन मे तो जीना तेरा सार्थक है 
बिना ध्येय के तो पशु  भी जीवन जीता है 
हार तेरा कलंक नहीं, किन्तु  बिना लड़े हाथ  खड़े करना तेरा अपमान है 
एक एक पल को यादगार बना दे 
जन्म को अपने साकार बना दे 
ना  डर तू लोगो से क्या  कहेंगे  
जो कहना  है वो कहने दे 
भूल जा जमाने को अपनी धुन मे बस चल  दे, तेरा कर्म ही तेरे साथ जाएगा 
मन की चंचलता को वश मे कर 
इन्द्रियों पर लगाम लगा 
आत्म विश्वास मन मे  जगा 
कमजोर नहीं तू, क्यों खुद से घबराता है 
बन अपना निर्णायक क्यों दूसरों को तकता है 
जीत जाएगा हर बाजी 
ज़ब मन मे राम  बसता है 
आ अब गीत ख़ुशी के गा क्यों आंसुओ को पिरोता है 
चलता जा रुकने का  नाम ले 
ज़ब तक सांसे चलती  है उम्मीदें जिन्दा रहती है 
उठ ना हार मान प्रयासों से 
पूरा होगा हर सपना जो संघर्षो की  भट्टी  पर तपता  है

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