फ़िल्म एक्टर लेखक सुनील दत्त मिश्रा जी की कविता 'उम्मीद पर कायम दुनिया'

शीर्षक    उम्मीद पर कायम दुनिया

चल पड़े हैं जिस जगह पर, राह हो कितनी कटीली
हारना हिम्मत नहीं है, हवा हो कितनी पनीली
सामने हो हिमशिखर और ठंड हो कितनी सुहानी
हो रही घनघोर वर्षा पत्तियों से झरे पानी
जंगलों के रास्ते कितने कठिन है उतार  बालेे
पकड़ कर हम पेड़ को कितने चले हैं, भार वाले
देखते हैं रास्ते में कांटे है
कितने कटिले
साथ में पाथेय लेकर हम चले फिर राह भूले
मंजिलों के पास है पर साथ में
छाता नहीं है 
छांव है कुछ पेड़ की अब
हमें कुछ भाता नहीं है
है इसी उम्मीद पर कायम
दुनिया जीत लेंगे
हम  प्रलय के बादलों से भी अनोखी प्रीत लेंगे
सुनील दत्त मिश्रा फिल्म एक्टर लेखक बिलासपुर छत्तीसगढ़

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