🌾 मुक्तक 🌾
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१
प्यार बिना जग ,जीवन सुना प्यार बिना करतार ।
प्यार ही पूजा और न दूजा प्यार जगत का सार।
पारस ,कल्पवृक्ष, कामधेनु सरस प्यार का रुप -
प्यार परम परमात्मा प्यार ही सृजन हार ।
२
कभी किसी से कुछ ना लेना बढ़ता जाये भार ।
सुख देना सबको सदा यही धर्म का सार ।
छल-कपट,धोखा,धडी़ कर ना किसी के साथ-
बक्र गति से लौट कर निज पर करते वार ।
३
करने में जो शर्म लगे बरे जगत में आग ।
वही बुरा जग में सदा करो अति शिध्र त्याग।
अच्छा लगे जो स्वयं को वही करो पर संग -
जीवन ज्योतित होगा बढे़ सदा अनुराग।
४
चाव ,लगन ,रुझान रखो आयेगा बदलाव ।
बढे़ आश -विश्वास तब निर्मल बने स्वभाव ।
कर्मप्रधान सर्वोपरि जगमें सर्व सम्मत का सार -
नजर शुध्द रख नेक नियत कर सत्कर्म लगाव।
५
अपना कुछ नहीं जग सपना है मन में करो विचार।
नर जीवन है अनमोल अति मिले ना बारम्बार ।
मै , मेरा , को त्याग सर्वदा तू , तेरा कर गान -
सहज भाव से हो जायेगा भव सागर से पार।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार)८४१५०८
मो०नं० - ९५७२१०५०३२
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