चेहरे पर खुशी

लघुकथा 

       चेहरे पर खुशी
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       रक्षाबन्धन का दिन था। 50 वर्षीय आनन्द अपने घर में काफी उदास बैठा था। वह मन ही मन सोच रहा था कि अभी तक मेरी दोनों बड़ी बहनों में राखी लेकर नहीं तो मेरी कोई दीदी आई और ना हीं उसका कोई चिठ्ठी,न फोन,न कोई राखी और ना हीं कोई तार आया।
    आनन्द मन हीं मन इन्हीं बातों में खोया हीं था कि आनन्द का चचेरा बड़ा भाई दीपक आया। दीपक ने आनन्द को उदास देखकर पुछा, आनन्द, तुम क्यों उदास हो। बताओ क्या बात है।
     आनन्द ने फफक फफक कर रोते हुए दीपक से कहा कि देखो न भैया,आज के रक्षा बंधन के दिन मेरी दोनों दीदी में से कोई भी नहीं आयी और ना हीं किसी ने अभी तक कोई राखी भेजा है।अभी तक दोनों दीदी में से किसी का नहीं तो कोई फोन, ना हीं कोई मैसेज और ना हीं कोई तार आया है।
    अरे पगले तो इसमें इतना रोने की बात क्या  है। देखो तुम्हारी तुम्हारी फुफेरी बहन अनामिका दीदी ने तुम्हारे लिये कुरियर से राखी भेजी है।
    इतना सुनते हीं आनन्द की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।
आनन्द ने आसमान की ओर निहारते हुये कहा कि हे भगवान तेरा लाख लाख शुक्रिया कि मेरी बड़ी बहन अनामिका दीदी ने मेरे लिये यह राखी भेज दिया।
    आनन्द के चेहरे पर आयी खुशी देखते हीं बन रही थी।
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          अरविन्द अकेला

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