जंग का सफ़र




जंग का सफ़र 
-------------------

मुझको गर मिला होता ,
तेरे संग का सफ़र ।
रंगों से भी निखरता ,
मेरे रंग का असर ।।

दिल्ली से दौड़ कर ,
लाहौर गया ।
तेरे घर में मेरा ,
नहीं  ठौर रहा ।।
तोहफे में दिया तूने ,
एक और जंग का सफ़र---
बरवादी के लिए ,
क्या? सोचा तूने ।
करवाता किसलिए ,
घर आंगन सूने ।।
ऐसे में होगा तंगी ,
और नंग का सफ़र -----
एक प्रीति से मैनें ,
तेरे दामन को छुया ।
तुझसे तो मिलन की भी ,
माँगी थीं दुआँ ।।
लेकिन है तुझ पर तो ,
किसी चंग का असर -------
इस जहाँ में अब नहीं;
तू रह पायेगा ।
आया था जहां से ,
वहाँ ही जायेगा ।।
अब जान लो "अनुज "
नहीं संग -संग का सफ़र।
रंगो से भी निखरता ,
मेरे रंग का असर ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ ( उत्तर प्रदेश)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ