कविता
कोई लौटा दो मेरा बचपन
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कोई लौटा दो मेरा बचपन,
जो बहुत हीं याद आता है,
करता हूँ जब याद बचपन का,
तन मन मेरा खिल जाता है।
सोनु मोनु रजिया दीपू संग,
चोर सिपाही,आसपास खेलना,
शाम को माँ की डाँट खाना,
आज भी मन को गुदगुदाता है।
कहाँ गये वे मेरे खेल खिलौने,
कहाँ गये वे दोस्त भाई-बहने,
कहाँ गया उनका निर्मल प्यार,
आज भी वो मेरे मन को भाता है।
जात,धर्म का नहीं भेदभाव था,
मन में झगड़ा झंझट,न ताव था।
कोई लौटा दो मेरी वह यादें,
जिससे हमारा गहरा नाता है ।
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अरविन्द अकेला
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